Menu
blogid : 1030 postid : 116

होs…s.. जिसका मुझेs..s..था इंतज़ार…वो घड़ी आ गईs…s……आ गई- राजीव तनेजा

हंसी ठट्ठा
हंसी ठट्ठा
  • 53 Posts
  • 123 Comments

अब इसे आलस कह लें या फिर कुछ और…पिछले कई दिनों से तबियत  ठीक नहीं थी….कभी पूरे बदन में ऐंठन के साथ असहनीय दर्द की शिकायत तो कभी सर में ऐसा भारीपन कि दिमाग ही कुंद पड़ने की ओर अग्रसर हो चले लेकिन फिर भी फैमिली डाक्टर के पास जा…उससे चैकअप करवाने का मन नहीं कर रहा था… भीड़ जो इतनी होती है उनके यहाँ कि देख-देख के घबराहट सी होने लगती है|

जुशांदे…अर्क और लेप से लेकर काढ़े तथा घुट्टियों तक ना जाने क्या-क्या टोटके नहीं आजमाए मैंने इस सब से निजात पाने के लिए लेकिन हालात जब ना चाहते हुए भी काबू से बाहर होने लगे तो अंत में थक-हार के मन को मारते हुए उनके क्लिनिक में जाना ही पड़ा| अनपढ़-गंवार मरीजों की वहाँ उमड़ी बेतरतीब भीड़ को देखकर मैं मन ही मन उस घड़ी को कोसने लगा जब मैंने उनकी सैक्रेटरी को अपाइंटमैंट के लिए फोन किया था|

खैर!..जो होता है..शायद अच्छे के लिए ही होता है…मेरी सारी खुंदक…मेरी सारी उकताहट एक ही झटके में तब रफा-दफा हो गई जब इत्मीनान से सारी रिपोर्टें चैक करने के बाद डाक्टर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा…
“बधाई हो!….नया मेहमान आने वाला है”…

बात ही ऐसी थी कि खुशी से फूला नहीं समा रहा था मैँ…बाहर उत्सुकता से इंतज़ार कर रही बीवी को जा के सारी बात बताई तो वो भी मुस्कुराते हुए बोली…

“मै तो पहले ही कह रही थी लेकिन आप माने तब ना”…

“हम्म!…

“परसों मम्मी से भी बात हुई थी इस बारे में …वो भी कह रहीं थी कि….

”ज्यादा दिन हो गए हैं अब…पूरी सावधानी बरतना…ज़्यादा मेहनत मत करना…बस…खूब खाओ-पिओ और आराम करो”…

“हम्म!…और क्या कहा उन्होंने?”…

“वही रूटीन की रोज़मर्रा वाली बातें कि….

‘दामाद जी को समझाना….जब तक फुल एण्ड फाईनल रिज़ल्ट ना आ जाए …रात-बेरात ओवर टाईम करना बंद कर दें”बीवी अपने  चेहरे पे शरारती मुस्कान ला..इठलाती हुई बोली

“ल्लेकिन अभी तो इसमें बहुत दिन पड़े हैं”मेरे स्वर में असमंजस भरा मायूसी का पुट था …
“समझा करो बाबा…बच्चा एकदम तन्दुरस्त होना चाहिए कि नहीं?”…
“होना तो चाहिए लेकिन….

ना चाहते हुए भी मैंने अनमने मन से हाँ कर दी…खानदान के होनेवाले वारिस का सवाल जो था| दिल…गार्डन-गार्डन हुए जा रहा था लेकिन भीतर ही भीतर मैं थोड़ा घबरा भी रहा था क्योंकि ये पहला-पहला चांस जो हमारा था
“अरे!..हाँ…याद आया….बाजू वाली शर्मा आँटी भी कह रही थी कि..

“झुकना तो बिलकुल भी नहीं” शांत-सौम्य बीवी की कर्कश आवाज़ से मेरे मन में बनते-बिगड़ते विचारों की श्रंखला टूटी

“हम्म!…

अब बस खाली बैठे-बैठे….आराम ही आराम था…खाते-पीते टीवी देख-देख के बड़े मज़े से टाईम पास हो रहा था ..कभी ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के भरपूर उत्सुकता भरे पलों को देख…सुन एवं महसूस कर हमारी सांसें अपने आप ऊपर-नीचे हो…उखड़ कर लडखडाने  लगती तो कभी कामेडी सर्कस के जादू में विशालकाय अर्चना की भीमकाय हँसी देख..हमारे लोट-पोट हो के बेदम हो जाने से लूज़ मोशन जैसी विकट एवं गम्भीर स्तिथि उत्पन्न होने को आती|

इस सब के बारे में जान मेरी कड़क सासू माँ ने बड़े ही मृदुल स्वर में.. गुस्से से आँखें तरेरते हुए हमारे टी.वी देखने को अनैतिक एवं अवांछनीय कृत्य का दर्जा दे इस पर पूर्णत्या बैन लगा.. हमें मासूम एवं निश्छल खुशियों से महरूम कर…एकदम से निहत्था करते हुए…हक्का-बक्का कर सकपकाने पे मजबूर कर दिया| अब तो बस घंटे दो घंटे चैट-वैट कर के या फिर मेल-वेल चैक कर के ही टाईम को पास किया जा रहा था…

जैसे-जैसे समय नज़दीक आता जा रहा था…वैसे-वैसे उल्टियाँ…दस्त और जी मिचलाने जैसी आम शिकायतों को लेकर घबराहट भी बढती जा रही थी…इस सब के बारे में जब डाक्टर को सब कुछ विस्तार से बताया तो उसका वही रटा-रटाया..छोटा सा जवाब मिला कि…

“चिंता ना करें,…सब ठीक हो जाएगा”…

“हुंह!…बड़ा आया….सब ठीक हो जाएगा…कभी अपने गले में उंगली डाल ..खुद का जी मिचला के तो देख”बीवी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच…बिना वीज़ा के ही वहाँ की सैर कर आया….

बढते वक्त के साथ धीरे-धीरे पेट का संपूर्ण उभार भी साफ़…स्पष्ट एवं दूर से ही दृष्टिगोचर होने लगा था..जिसके चलते घर से बाहर निकलने में एक अजीब सी हिचकिचाहट भी खुद बा खुद हमारे मन में उत्पन्न हो..अपना घर बनाने लगी थी

“उफ!…लोगों की ये तिरछी नज़र…ये उल्टे-सीधे…बिना बात के कमैंट”…

“पता नहीं क्या मिल जाता है लोगों को इस सबसे?”बीवी ने मेरी हाँ में हाँ मिलाई

लेकिन नए मेहमान के आने की खुशी से बढकर कुछ भी  नहीं था हमारे लिए… इसलिए!…किसी की परवाह न कर हम अपने में ही मग्न और मस्त रहने लगे थे

“देखो जी…कितने ज़ोर से हिल रहा है”बीवी ने हौले से पेट पे अपना ममतामयी हाथ फिरा.. मुस्कुराते हुए कहा

“अरे!…हाँ…ये तो सचमुच में ही….(मैं खुशी के मारे किलकारी मार हँसता हुआ बोला)

खुशी के मारे शब्द नहीं निकल रहे थे मेरे मुंह से…लात मार कर जो उसने मुझे अपने अस्तित्व का…अपने होने का एहसास करा दिया था|

एन  मौके पे कहीं दिक्कत से सामना कर…उससे दो-चार ना होना पड़ जाए इसलिए इसलिए..टाटरी…इमली एवं खटाई  का पूरा स्टाक भी हमने पहले से ही मंगवा के रख लिया था|

“अब इतने दिन बचे हैं तो अब इतने”…
एक-एक पल काटे ना कट रहा था हमसे …उलटी गिनती गिनने…गिनते चले जाने के बावजूद भी टाईम ना जाने क्यों पास ही नहीं हो रहा था हमारा…

डाक्टर के कहे अनुसार सुबह-शाम….बिना नागा रोजाना की सैर का नियम भी हमने सख्ती के साथ अपना लिया था…उस दिन भी हम डिनर करने के बाद अपने तयशुदा कार्यक्रम के तहत गली में घूम ही रहे थे कि अचानक पाँव फिसलने से उत्पन्न हुई आपातकालीन विपदा के तहत मैं बड़ी जोर से चिल्लाता हुआ धडाम से जा कर ज़मीन पे आ गिरा…मेरी ऐसी हालत देख बीवी भी फूट-फूट कर …दहाड़ें मार-मार कर रोने लगी…

उसकी चीत्कार भरी करुण पुकार और मेरा रुदन सुन पता नहीं कहाँ से एक  भलामानस पुरुष हमारी मदद को आ गया और उसी ने हमसे पूछ ..हमें हमारे फैमिली डाक्टर के क्लीनिक के बाहर ला…पटक दिया

“शुक्र है खुदा का कि तुम लोग टाईम पर आ गए हो….अभी के अभी तुरंत  डिलीवरी करनी पड़ेगी”डाक्टर मेरी तरफ देख चिंतित स्वर में बोला…
मैने बीवी की तरफ देखा तो उसने धीरे से मुंडी हिला कर अपनी हामी भर दी तो मैने भी चुपचाप हाँ कर दी…टैंशन बहुत हो रही थी क्योंकि डाक्टर ने कहा कि…
“सिज़ेरियन करना पड़ेगा और कोई चारा नहीं है”….

“जी!…

“और खर्चा भी काफी आएगा”…

खर्चे की बात सुन मेरी तो जैसे जान ही हलक में अटक वहीँ फँस  गयी”..
आँसू रोक पाना अब बस में ना था मेरे लेकिन बीवी ने हिम्मत दिखाई और बोली…..
“डाक्टर साहब!…जैसा आपको मुनासिब लगे…आप वैसा ही कीजिए…कैसे ना कैसे करके हम मैनेज कर लेंगे”…

फटाफट बड़े डाक्टर और ऐन्सथीसिएस्ट को बुलाया गया….उनके आने तक आप्रेशन की सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थी….आते ही बेहोशी का इंजैकशन लगाया गया और उसके बाद कुछ होश नहीं…कुछ याद नहीं…
बस!…हल्की-हल्की सी कुछ आवाज़ें कहीं दूर सुनाई दे रही थी…

“घबराना नहीं…घबराना नहीं”…

“हाँ!…ज़ोर लगाओ”….

“हाँ!…और ज़ोर”…

“शाबाश!…बस…हो गया”…

“हिम्मत से काम लो….बस…हो गया….शाबाश”…

“ऊपरवाले का नाम लो… सब ठीक हो जाएगा”…
मैँ भिंचे दाँतों से मन ही मन अपने इष्ट को याद कर प्रार्थना किए जा रहा था कि….

“हे!…ऊपरवाले…हमारी लाज रख लो”…

“हमें और कुछ नहीं चाहिए…बस हमारी लाज रख लो”…
अचानक मेरी बन्द आँखों को चौंधियाती हुई सतरंगी चमक से लैस  एक चमकदार रौशनी मेरे मन-मस्तिष्क को भीतर तक छू कर हौले से निकल गई और इसके साथ ही साथ एक बच्चे के किलकिला का बिलबिलाते हुए रोने की आवाज़ से हमारी ज़िन्दगी का सूनापन …अब सूना नहीं रहा|
खुशी से भर उठा मैँ…

“होs…s.. जिसका मुझेs..s..था इंतज़ार…वो घड़ी आ गईs…s……आ गई”
“होs…s…जिसके लिए था दिल बेकरार…वो घड़ी आ गईs..s…आ गई”….

“हुँह!…अब देखूँगा कि कौन हम पे उँगलियाँ उठाता है?…कौन ताने कसता है?”…
“एक-एक का मुंह तोड़ के उसे मुंहतोड़ जवाब ना दिया तो मेरा भी नाम  ‘राजीव’ नहीं”…

“आखिर!…हम बदनसीबों पे तरस आ ही गया उस परवरदिगार को और आता भी भला क्यों ना?”…

“कौन सी कसर छोड डाली थी हमने भी उसे मनाने में?…हर जगह ही तो जा-जा के सीस झुकाया था चाहे वो…मन्दिर हो या फिर हो कोई मस्जिद| यहाँ तक कि चर्च और गुरूद्वारे तक भी हो आए थे हम”…
चेहरे पे अब तसल्ली का सा भाव था कि …चलो एक काम तो बना और यही सबसे मुश्किल काम भी तो था| नर्स भी ईनाम के लालच में अपनी आँखो में चमक ला दक्षिण भारतीय टच में हिंदी बोलने की कोशिश करती हुई बोली…

“बधाई हो सर..लड़का हुआ है”…

“पाँच सौ का कड़कड़ाता हुआ नोट लिए बिना नहीं मानी लेकिन कोई गम नहीं….नए मेहमान की खातिर तो ऐसे कई नोट कुर्बान कर दूँ”…

खुशी के मारे सब बावले हो चहक रहे थे…बीवी की खुशी छुपाए ना छुप रही थी और मेरे आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे…खुशी के आँसू जो ठहरे| हमारा ओवर टाईम अपना रंग और कमाल दोनों दिखा चुका था..  कड़ी मेहनत…पूरी लगन…पक्का इरादा और साथ ही मंज़िल तक पहुँचने का ज़ुनून जो था हमारे अंदर

***राजीव तनेजा** *

http://hansteraho.blogspot.com

rajivtaneja2004@gmail.com

+91981082136

+919213766753ting

+919136159706

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh