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“मैं लुट गया…मैं बर्बाद हो गया बाबा ….कुछ तो करो..कोई तो उपाय बताओ..आज जन्मदिन है मेरा लेकिन फिर भी दिल उदास है”…
“क्या कष्ट है तुझे बच्चा?…बता…राम जी भली करेंगे”…
“अब आपसे क्या छुपा है बाबा?…..आप तो सर्वदृष्टिमान है”…
“बीवी मायका छोड़…वापिस तेरे घर पे लौट आई है क्या?”…
“ज्जी!…जी महराज…आप तो अन्तर्यामी हैं… इसी दुःख से तो मैं हैरान-परेशान हूँ कि इतनी जल्दी कैसे…
“हम्म!…तो जा…..सूखे गुड़ के साथ तीन हफ़्तों तक बिना अदरक की…हींग-मुल्ट्ठी वाली चाय सुबह-शाम अपने हाथ से बना के पिला …तेरे सारे कष्ट…तेरे सारे दुःख दूर हो जाएंगे?”…
“बीवी को?”…
“आक!…थू…वो क्या तेरे दुःख हरेगी?…वो तो खुद ही मुसीबतों का पहाड़ है…टेंशन का अम्बार है”…
“ज्जी!…जी…महराज…..ये बात तो आपने बिलकुल सही कही…वो तो…
“जैसा मैंने कहा है…बिना नहाए-धोए नियमपूर्वक वैसा ही कर…तेरे सारे दुःख…तेरे सारे दर्द अपने आप दूर होते चले जाएंगे”…
“जी!…महराज….लेकिन मेरे बच्चे तो चाय पीते ही नहीं हैं”…
“तो?”…
“तो फिर मैं किसे अपने हाथों से चाय बना के…
“आक!…थू…तू अभी तक नहीं समझ पाया?….ये तेरे सामने कौन खड़ा है?”बाबा सीना तान..हथेली से अपनी तरफ इशारा करता हुआ बोला…
“कौन खड़ा है?…कोई भी तो नहीं”मैं इधर-उधर देखते हुए बोला…
“आप महराज…आप”…
“तो फिर चाय किसे पिलाएगा?”…
“आपको…महराज…आपको”…
“शाबाश!…
“तो इससे क्या मेरे सारे दुःख-दर्द दूर हो जाएंगे महराज?”…
“ये तो पता नहीं लेकिन हाँ!…मेरा मूड ज़रूर फ्रेश हो जाएगा”…
“मैं कुछ समझा नहीं…महराज”..
“आक थू!…मूड फ्रेश होगा …तभी तो तेरी समस्या का हल ढूंढूंगा..बच्चे”…
“ओह!…
“बस!…एक यही कष्ट है तुझे..बच्चा…या फिर कोई और तकलीफ भी है?”..
“अब तकलीफों की क्या कहूँ महराज?…उनकी तो भरमार है…मुसीबतों का अम्बार है…आप सर पे हाथ रख दें तो मेरा बेड़ा पार है”मैं बाबा के आगे नतमस्तक हो..हाथ जोड़ गिडगिडाता हुआ बोला …
“हम्म!..
“लेकिन महराज..आपने कैसे जान लिया कि मैं किसी और दुःख से भी पीड़ित हूँ?”मैं बाबा के ललाट की तरफ गौर से देखता हुआ बोला …
“आक!…थू….बाबा के दिमाग को पढ़ना चाहता है?”मुझे अपनी तरफ घूरता पा बाबा बौखला उठा …
“ना!…महराज…ना…मेरी ऐसी औकात कहाँ कि….(मेरा विनम्र स्वर)
“हम्म!..तो फिर बता…क्या कष्ट है तुझे?”बाबा शांत स्वर में सौम्य होता हुआ बोला…
“अब आपसे क्या कहूँ बाबा?…जब से कॉपर टी लगवाई है…बीवी ने नाक में दम कर दिया है”मैं झेंप कर कुछ शरमाता हुआ बोला …
इसे परिवार नियोजन के लिए महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किया जाता है) में लगवाएगा तो दम तो फूलेगा ही बच्चा”…
“हैं…हैं…हैं…आप भी ना महराज…कैसी बात करते हैं?”मेरा खिसियाया हुआ स्वर…
“कॉपर टी?…और वो भी नाक में?”…
“हैं…हैं…हैं…आपके भी ना…सैंस ऑफ ह्यूमर का जवाब नहीं”…
“अब क्या करें?…ऊपरवाले ने हमें नेमत ही कुछ ऐसी बक्शी है”….
“जी!…महराज”…
“क्या कहती है वो?”…
“पंगा तो यही है महराज कि कुछ भी नहीं कहती है..बस जब से…
“कॉपर टी लगवाई है?”..
“जी!…बस तभी से मुंह फुला के बैठी है”…
“बच्चे कितने हैं तेरे?”…
“बीवी से…या फिर….
“बीवी से”…
“तीन”…
“हम्म!…
“क्या सोच रहे हैं महराज?”…
“यही कि क्या वजह हो सकती है तेरी बीवी की तुझ से नाराजगी की?”…
“अभी बताया ना कि जब से मैंने कॉपर टी लगवाई है?”…
“कॉपर टी तुमने लगवाई है?”..
“जी!…महराज”..
“अरे!…ये मर्द कब से कॉपर टी लगवाने लग गए?”…
“अब…बाकियों का तो पता नहीं महराज लेकिन मैंने तो इसी महीने …22 तारीख को लगवाई है”…
“कोई खास वजह?”…
“जन्मदिन था उसका”…
“हम्म!…तो उसे जन्मदिन का तोहफा देने के बदले तुमने कॉपर टी लगवा डाली?”…
“जी!…महराज”…
“नॉट ए बैड आईडिया लेकिन एक मर्द हो के तुमने…कॉपर टी?”…
“आपकी बात सही है महराज…मर्दों को ऐसे-छोटे-छोटे काम शोभा नहीं देते…उनकी गरिमा के अनुकूल नहीं है ये सब”…
“तो फिर?”…
“दरअसल क्या है कि मेरे लिए ये औरत-मर्द के फर्क बेमानी हो चुके हैं”…
“कब से?”..
“जब से मैंने अपनी बीवी को मुंहतोड़ जवाब देने की ठानी है”…
“फिर भी….कब से?”..
हिम्मत है तो लगवा के दिखाओ”…
“तो?”..
“तो क्या?…मैंने भी आव देखा ना ताव….झट से बिना सोचे समझे लगवा डाली”…
“हम्म!..तो दर्द वगैरा भी तो खूब हुआ होगा?”..
“जी!…महाराज…एक बार तो मेरा दिल ही समझो बैठ गया था कि…इतना खर्चा?”..
“कितना खर्चा?”…
“यही कोई पच्चीस-छब्बीस हज़ार के आस-पास का खर्चा बैठा था कुल मिला के”…
“प्प..पच्चीस-छब्बीस हज़ार या पच्चीस-छब्बीस सौ?”…
“हज़ार”….
“क्क्या?…क्या कह रहे हो?”..
“जी!…
“लेकिन मैंने तो सुना था कि…
“जी!…सुना तो मैंने भी बहुत कुछ था कि इससे बहुत कम में काम बन जाता है लेकिन असलियत में जब पता करो तो पैरों के नीचे से ज़मीन खिसकती हुई प्रतीत होती है”…
“ओह!…
“इन सुनी-सुनाई बातों पे यकीन करना तो बिलकुल बेकार है जी”…
“हम्म!…तो कहीं ट्राई वगैरा भी किया था या ऐसे ही जिसने जो पैसे मांगे…चुपचाप पकड़ा दिए?”…
“क्या बात करते हैं स्वामी जी आप भी?…इतना भोला नहीं हूँ मैं कि कोई भी ऐरा-गैरा…नत्थू-खैरा मुझे उल्लू बना…मेरा फुद्दू खींच जाए”…
“हम्म!…
“कई जगह ट्राई किया…यहाँ तक कि दिल्ली छोड़…सांपला और बहादुरगढ़ तक भी हो आया मैं लेकिन वो कहते हैं ना कि चिराग तले अँधेरा”…
“जी!…
“अपने घर के पास ही एक किफायती दरों पे कॉपर टी लगवाने वाला मिल गया”..
“ओह!…ये तो वही बात हुई कि बगल में छोरा और पूरे गाँव में ढिंढोरा”…
“जी!…बिलकुल”…
“लेकिन कहीं जल्दबाजी के चक्कर में तुम किसी अनाड़ी के धोरे तो नहीं फँस नहीं गए ना?”..
“नहीं!…महराज…बिलकुल नहीं…खानदानी पेशा है उसका…बाप बढ़ई और चाचा प्लंबर है उसका”…
“बाप बढ़ई और चाचा प्लंबर?”…
“जी!…
“तो फिर वो कैसे….
“अपने-अपने शौक की बात है”….
“हाँ!…ये बात तो है….अब मुझे ही लो…कहाँ जेबतराशी और उठाईगिरी का हरदम लड़ाई-झगड़े वाला एकदम उद्दंड टाईप खानदानी पेशा और कहाँ ये शांत…सौम्य एवं निर्मल..बाबागिरी का कोमल टाईप सकुचाता हुआ धंधा?”…
“जी!…
“लेकिन कई बार ना चाहते हुए भी इंसान के पुराने करम…पुराने पाप जाग उठते हैं”..
“जी!…पहलेपहल तो मैं भी डर गया था जब काम शुरू करने से पहले उसने अपने झोले में से जंग लगी ‘आरी’…’चौरसी’ और ‘तिकोरा’ निकाल साईड पे रख दिया था”…
“ओह!…फिर क्या हुआ?”..
चिंता ना करो…ये काम तो मैंने कब का छोड़ दिया”…
“ओह!…तो फिर इस तरह…अपने जंग लगे औजारों की ये नुमाईश…ये प्रदर्शनी किसलिए?”…
“मैंने भी बिलकुल यही…सेम टू सेम क्वेस्चन पूछा था उससे कि…तो फिर ये भयावह और डरावना प्रैजेंटेशन किसलिए?”..…
“तो फिर क्या कहा उसने?”..
“यही कि इंसान को अपनी औकात नहीं भूलनी चाहिए कभी”…
“गुड!…ये हुई ना बात…इसका मतलब वो अपने उसूलों का बड़ा ही पक्का है”बाबा उछल कर ताली बजाते हुए अपने आसान पर उकडूँ हो के बैठ गया …
“जी!…बिलकुल….तभी तो उसने वो आधा किलो के ‘फेवीकोल’ का पुराना डिब्बा भी बाहर निकाल के मुझे पकड़ा दिया”…
“फ्फ…फेवीकोल का पुराना डिब्बा?”…
“जी!…
“लेकिन किसलिए?…तुमने इसका क्या करना था?”..
“यही तो मैंने भी उससे पूछा था कि….मैं इसका क्या करूँ?…..तो पता है कि उसने मुझे क्या जवाब दिया?”..
“क्या?”…
“यही कि अब ये मेरे किसी काम का नहीं है……इसे तुम रख लो…तुम्हारे काम आ जाएगा”…
“मुफ्त में?”..
“जी!…
“इसका मतलब बड़ा ही शरीफ आदमी मिला था तुम्हें”…
“जी!…निहायत ही शरीफ”…
“फिर क्या हुआ?”…
“मैंने उसे कहा कि… ‘जल्दी से काम निबटाओ…मुझे गिफ्ट लेने के लिए बाज़ार भी जाना है’…
“गिफ्ट?”..
“जी!…जन्मदिन था ना उसका”…
“लेकिन तुम तो गिफ्ट के बदले कॉपर टी लगवा रहे थे ना?”…
“जी!…लेकिन सैलीब्रेशन के लिए केक-शेक और गुब्बारों वगैरा का इंतजाम भी तो मुझी को करना था ना?”…
“फिर क्या हुआ?”..
“जब मैंने उसे कहा कि … ‘जल्दी से काम निबटाओ…मुझे गिफ्ट लेने के लिए बाज़ार भी जाना है’…तो पता है उसने क्या कहा?”…
“क्या?”…
“यही कि …’एक मिनट!…पहले ये पाईप रैच ज़रा दुरस्त कर लूँ”…
“प्पाईप रैंच?”…
“जी!…उसके चाचा का था…उन्होंने उसे ठीक करने के लिए दिया था”…
“ओह!…
“मैं तो उसके इस मल्टी टैलेंटिड हुनर को देख के दंग रह गया जब उसने मुझे बताया कि वो ‘वाशिंग मशीन’ से लेकर ‘कूलर’…’मिक्सी’…’ग्राईन्डर’ और ‘माईक्रोवेव’ तक …सबको ठीक करना जानता है”…
“और इसी इंसान से तुमने ‘कॉपर टी’ लगवाई”…
“जी!…
“तुम्हें लाज ना आई?”…
“वो किसलिए?”…
“अरे!…तुमने सुना नहीं है कि एक साथ दो नावों पे सफर करना कितना खतरनाक होता है?”…
“जी!…सुना तो है”…
“और तुम्हारे ये चहेते शख्स तो एक साथ कई नावों की सवारी कर रहे थे”…
“जी!…अपनी-अपनी काबिलियत की बात है….अब मुझे ही लें…मैं धंधा भी करता हूँ और हास्य-व्यंग्य भी लिखता हूँ”..
“तुम धंधा करते हो?”…
“जी!…
“बीवी को पता है?”..
“जी!…हमने लव मैरिज की है”…
“तो?”..
“धंधे के टाईम पे ही तो हमारी सेटिंग हुई थी”…
“क्क्या?”…
“जी!…पहली बार वो अपनी मम्मी के साथ आई थी”…
“म्म….मम्मी के साथ?”…
“जी!…
“तो क्या वो भी जानती हैं कि तुम धंधा करते हो?”…
“कमाल करते हैं आप भी…पहले तो वही मेरी कस्टमर थी…बेटी से तो मैं बाद में मिला था”…
“ओह!..तो फिर उसके होते हुए तुम दोनों की आपस में सेटिंग कैसे हुई?”
“उसकी माँ मेरी लकी कस्टमर थी इसलिए मैं उनकी कुछ ज्यादा ही खातिरदारी किया करता था”..
“लकी कस्टमर?”…
“जी!…लकी कस्टमर….जिस दिन मेरी बोहनी उनसे हो जाती थी ना..…उस दिन तो ग्राहकों की ये लंबी-लंबी लाईनें लग जाती थी मेरे पास”…
“ओह!…
“वर्क लोड इतना बढ़ जाता था कि ना चाहते हुए भी कई बार मुझे अपने छोटे भाई को बुलाना पड़ जाता था”…
“ग्राहक अटैंड करने के लिए?”..
“नहीं!…ग्राहकों को तो मैं खुद ही.अपने तरीके से अटैंड करता था…उसके बस का नहीं था उन्हें सैटिसफाई करना…छोटा बहुत था ना वो”…
“ओह!…
“वो तो बस ऐसे ही…छोटे-मोटे काम कर के थोड़ी बहुत हैल्प कर दिया करता था”…
“हम्म!..तुम बता रहे थे कि तुम्हारी सेटिंग कैसे हुई?”…
“जी!…जैसा कि मैंने बताया कि उसकी माँ मेरी लकी कस्टमर थी तो मैं दूसरे ग्राहकों के मुकाबले उनकी कुछ ज्यादा ही खातिरदारी किया करता था”…
“कैसे?”..
“जैसे अच्छी सर्विस दे के…पॉपकार्न और आईसक्रीम वगैरा मुफ्त में खिला के”…
“तो?”…
“ऐसे ही एक बार जब उनका ध्यान आईसक्रीम और पोपकार्न की तरफ था तो मौका पा के मैंने उनकी बेटी याने के अपनी बीवी को प्रपोज़ कर दिया?”..
“और वो मान गई?”..
“जी!..अंधे को क्या चाहिए होता है?”…
“वो अंधी थी?”…
“नहीं तो”..
“तो फिर?”…
“पहले आप बताईये ना कि अंधे को क्या चाहिए होता है?”..
“दो आँखें”…
“और मेरे पास तो दो नहीं बल्कि चार थी”…
“दो तुम्हारी और दो तुम्हारे भाई की?”…
“शादी मैंने करनी थी के भाई करनी थी?”…
“तुमने?”..
“फिर भाई इसमें कहाँ से आ गया?”…
“अभी तुमने ही तो कहा कि …मेरी दो के बजाये चार आँखें थी”…
“ओह!…लगता है कि आप मेरी बात का मतलब नहीं समझे”…
“कैसे?”…
“मैं अपने इस चश्मे की बात कर रहा था”…
“ओह!…लेकिन ऐसे…किसी धंधेबाज को..बिना सोचे समझे अपनी जवान बेटी सौंप देना क्या जायज़ था?”..
“क्यों?…इसमें नाजायज़ क्या दिख रहा है आपको?…उन दिनों भी मैं अच्छा-ख़ासा कमाता था”…
“तो क्या पैसा ही सब कुछ है इस दुनिया में?…इज्ज़त-आबरू कुछ नहीं?”…
“मैं कुछ समझा नहीं”…
“भय्यी!…तुम कुछ भी कहो लेकिन मुझे तुम्हारी सास की ये बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी…अपनी पूरी ज़िंदगी की दौलत याने के अपनी बेटी को किसी को सौंपने से पहले कम से कम ये तो देखना चाहिए कि लड़का करता क्या है?…उसका चाल-चलन कैसा है?…पीता-खाता तो नहीं है”…
“क्या आईसक्रीम खाना और पेप्सी पीना गुनाह है”…
“मैं ये बात नहीं कर रहा हूँ”…
“तो?”..
“मैं तुम्हारे धंधा करने की बात कर रहा हूँ”…
“तो?…क्या बुराई है मेरे धंधे में?…दरवाज़े-खिड़कियाँ ही तो बेचता हूँ…कोई स्मैक…चरस…गांजा या पोस्त तो नहीं”…
“दरवाज़े-खिड़कियाँ?”…
“जी!…वही तो लेने आती थी उसकी माँ…अपना मकान जो बना रही थी नए सिरे से”…
“ओह!…
“वैसे आप क्या समझ रहे थे?”…
“क्क..कुछ भी तो नहीं”…
“हाँ!…तो हम कहाँ थे?”मैं अपनी विचारतंद्रा तोड़ता हुआ बोला …
“तुमने उस मोची से ‘कॉपर टी’ लगवाई थी”…
“मोची से नहीं…जादूगर से”…
“जादूगर से?”…
“जी!…
“कैसे?”…
“अपना काम निबटा के जब वो गया तो मैंने पाया कि कुछ देर पहले फ्रिज के ऊपर जो घड़ी पड़ी थी…वो अब दिखाई नहीं दे रही थी”…
“बेवाकूफ!…वो जादूगर नहीं बल्कि चोर था…एक शातिर चोर”..
“च्चोर?”…
“हाँ!…चोर”..
“ओह!…
“अब यहाँ बैठ के बिलकुल भी टाईम वेस्ट ना कर और जा के फटाफट…किसी अच्छे…सीनियर डाक्टर से अपना सारा चैकअप करा कि कुछ उलटा-सीधा सामान अन्दर ही ना छोड़ दिया हो उस हरामखोर ने…मुझे तो तरस आ रहा है तुझ पर और तेरी ढलती जवानी पर”…
“स्स…सामान छोड़ दिया हो?”..
“हाँ!…ऐसे अनाड़ी लोगों का कुछ पता नहीं…बड़े लापरवाह होते हैं…एक बार ऐसे ही एक पागल के बच्चे ने…पूरी साबुत धार लगी कैंची ही अन्दर छोड़ दी थी अपने मैले दस्तानों समेत”…
“ओह!…लेकिन महराज…इस बात को हुए तो पूरे दस दिन बीत चुके हैं अब तक…अगर कुछ होना होता तो अब तक हो चुका होता”…
“अरे!…अनहोनी का कुछ भरोसा नहीं…कब हो जाए…पहले से ही सावधान होने क्या बुराई है?”…
“जी!…बुराई तो कुछ नहीं लेकिन ऐसे ही बेकार में टेंशन ले के क्या फायदा?”…
“तुम्हारी बात सुन कर मेरी जान पे बन आई है और ये तुम्हें बेकार की टेंशन दिखाई दे रही है?”…
“महराज!…आप मेरी इतनी चिंता कर रहे हैं…इसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ लेकिन मेरे ख्याल से…
“नहीं!…कुछ भी नहीं सुनूंगा मैं तुम्हारी..पैसे नहीं हैं तो मुझ से उधार ले लो लेकिन प्लीज़…अभी के अभी चलो मेरे साथ…तुम्हें कसम है तुम्हारे खुदा की…पूरा चैकअप कराये बिना मुझे बिलकुल भी चैन नहीं पड़ेगा”…
“लेकिन महराज…ऐसे ही बेकार में खर्चा कर के क्या फायदा?”…
“ओह!…तो इसका मतलब तुम पैसों की वजह से ऐसा कह रहे हो?”…
“जी!…
“ठीक है…तो फिर बचा के रखो तुम अपने पैसे…मैं ही भर दूँगा लेकिन प्लीज़…चलो अभी के अभी मेरे साथ”बाबा अपने आसान से उठ चलने की मुद्रा अपनाते हुए बोले…
“लेकिन!…महराज….अगर ऐसी ही कोई बात हुई होती तो कोई चिंगारी…कोई शार्ट सर्किट…कुछ तो हुआ होता”…
“चिंगारी या शार्ट सर्किट?”..
“जी!…
“मैं कुछ समझा नहीं”…
“आप समझेंगे भी नहीं”…
“क्या मतलब?”…
“पूरे घर में मैंने टॉप क्वालिटी की कालिंगा ब्राण्ड वायरज़ का इस्तेमाल करवाया है”…
“तो?…उससे क्या होता है?”…
“उसी से तो सब कुछ होता है”…
“क्या मतलब?”..
“अरे!…जब सबसे महंगी वाली तारें घर में डलवा के मैंने अपने घर को रौशन कर लिया तो फिर किसी किस्म के शक और शुबह की गुंजाईश ही कहाँ रह जाती है?”..
“मैं कुछ समझा नहीं”…
“ओफ्फो!…लगता है आपका दिमाग घास चरने गया है”…
?…?…?…?
“मैंने आपको बताया था कि नहीं?”…
“क्या?”..
“यही कि मैंने ‘कॉपर टी’ लगवाई है”…
“हाँ!…बताया तो था”…
“तो ‘कॉपर टी’ माने…कॉपर की ‘T’ ”…
?…?…?…?
“अब भी कुछ नहीं समझे?”..
“नहीं”…
“कॉपर किसे कहते हैं?”…
“तांबे को”…
“बिलकुल ठीक…और ‘टी’ माने तार(Taar)”…
“मैंने अपने घर में ‘कॉपर टी’ याने के तांबे की तारें ही तो डलवाई हैं”…
“क्क्या?”…
“हाँ!…इतनी देर से मैं उसी की तो बात कर रहा था”…
“क्क्या?”…
“जी!…आप कुछ और समझे थे क्या?”…
“न्नहीं तो”…
“बस!…’कॉपर टी’ का लगवाना था और मेरी बीवी का मुँह सुजाना था”…
“लेकिन तुमने ये अपनी तथाकथित ‘कॉपर टी’ तो जन्मदिन के तोहफे के बदले में ही लगवाई थी ना?”…
“जी!..
“तो फिर इसमें तुम्हारी बीवी को क्या ऐतराज़ है?”…
“यही बात तो मेरी भी समझ में नहीं आती कि अगर किसी गरीब बेचारी का कुछ भला हो जाएगा तो इसका क्या बिगड जाएगा?”…
“तुम्हारी बीवी गरीब है?”…
“नहीं तो”…
“फिर गरीब कौन है?”..
“वही!…जिसके घर में मैंने ‘कॉपर टी’ लगवाई थी”…
“किसके घर में?”..
“अपनी माशूका के घर में….उसी का तो जन्मदिन था”..
“क्क्या?”…
“जी!…आप कुछ और समझे थे क्या?”…
“न्नहीं तो”…
“अब तो बाबा…आप ही कुछ करो…मेरी डूबती नैय्या आप ही के हाथ है…आप ही मेरे तारणहार हैं…आप ही मेरे पालनहार हैं”…
“क्या करूँ?”बाबा का असमंजस भरा स्वर…
“बाबा आप हैं कि मैं?”..
“मैं”…
“तो फिर कुछ करो ना”..
“क्या?”..
“लट्ठ मार के मुँह तोड़ दो ससुरी का”…
“माशूका का?”…
“नहीं!…बीवी का”…
“नहीं!…ये मुझसे ना होगा”…
“तो फिर बाबा…कुछ तो करो…कोई तो उपाय बताओ…मैं लुट गया…मैं बरबाद हो गया”…
***राजीव तनेजा***
सभी चित्र गूगल से साभार
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