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खबरों में से खबर सुनो- राजीव तनेजा

हंसी ठट्ठा
हंसी ठट्ठा
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“खुश खबरी…खुश खबरी…खुश खबरी”…

पूरे दिल्ली शहर के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी नामी और बिगड़ैल रईसजादे ने अपने अनुभवों को..अपनी भावनाओं को…अपनी कामयाबी के रहस्यों को खुलेआम सार्वजनिक करने की सोची है ताकि आने वाली पीढियाँ उन्हें अमल में ला कामयाबी के रास्ते पे चल सकें।जी हाँ!…शहर के जाने-माने सेठ और समाजसेवी श्री फकीर चन्द जी साक्षातकार के लिए मान गए हैँ और उन्हें राज़ी करने के लिए हँसते रहो वालों की पूरी टीम (जिसमें सिर्फ मैँ शामिल हूँ) को काफी पापड़ ही नहीं बेलने पड़े बल्कि उनके साथ-साथ कुछ मसालेदार ‘पंजाबी वड़ियाँ’ तथा ‘गुजराती ढोकला’ भी बनाना और खाना पड़ा।

हाँ!…तो अब आप पाठकों के समक्ष पेश है उनके साथ हुई बातचीत का अक्षरश ब्योरा:

हँसते रहो:हाँ तो!…फकीर चन्द जी….इंटरव्यू शुरू करें?…

फकीर चन्द:जी बिलकुल…

हँसते रहो:ठीक है!…तो मैँ ये टेप रेकार्डर ऑन किए देता हूँ ताकि बाद में किसी किस्म का कोई कंफ्यूज़न पैदा ना हो…

फकीर चन्द:मतलब?

हँसते रहो:वो क्या है कि बड़े लोगों को बाद में अक्सर ये मुगाल्ता लग जाता है कि उनके ब्यान के साथ अनावश्यक रूप से छेड़छाड़ की गई है

फकीर चन्द:ओह!…फिर तो आप ज़रूर ही ऑन कर दें..ये तो बहुत ही बढिया जुगाड़ बताया आपने …इसमें तो किसी भी तरह के शक और शुबह की गुंजाईश ही नहीं

हँसते रहो:जी बिलकुल…तो फिर शुरू करें?…

फकीर चन्द:शौक से

हँसते रहो:ओ.के…

“पहले तो मैँ राजीव तनेजा अपने सभी पाठकों की तरफ से आपको धन्यवाद देता हूँ कि आप हमसे बात करने के लिए राज़ी हुए।बेशक!…इस काम में मुझे अपने हाथ-मुँह-कान और कपड़े…सब लिबेड़ने पड़े।

फकीर चन्द:नहीं-नहीं!…ऐसी कोई बात नहीं है जी…बात करने के लिए तो मैँने कभी किसी को इनकार ही नहीं किया और ना ही कभी ऐसा करने का इरादा है लेकिन ये और बात है कि किसी दूसरे को मुझसे बात करने की कभी सूझी ही नहीं।

हे हे हे हे …

हँसते रहो:आप तो शहर के जाने-माने उद्यमी हैँ और गुप-चुप ढंग से गरीबों में दाल-चावल से लेकर कम्बल बाँटने तक और….रक्तदान से लेकर नेत्रदान तक सभी तरह के समाजसेवी  कामों में बढ-चढ कर भाग लेते रहते हैँ

फकीर चन्द:ये आपसे किसने कहा?….

हँसते रहो:मेरी बीवी संजू ने…वो लॉयंस क्लब की एक्टिव मैम्बर है…उसी ने आपको कई बार रुबरू देखा है ऐसे प्रोग्रामों में”…

फकीर चन्द:ओह!….

हँसते रहो:आपका कभी मन नहीं हुआ कि आपको भी लाईम लाईट में चर्चा का विष्य बनना चाहिए?

फकीर चन्द:नहीं!….बिलकुल भी नहीं….अब अपने इन्हीं ‘पासाराम बाबू’ जी को ही लो…आ गए ना ‘सी.बी.आई’ के लपेटे में?…बड़ा शौक चर्रा रहा था ना उनको ‘टी.वी’ में आ के राम कथा करने-कराने का..अब भुक्तो”…

“लाख बार समझाया था कि ये मीडिया वाले किसी के सगे नहीं होते…इनकी लाईम लाईट में आना ठीक नहीं…अपना आराम से जो करना-कराना था चुपचाप करते रहते लेकिन नहीं!…हीरो बनना चाहते थे ना?”…

“क्या हुआ?…बहुत बन लिए ना हीरो?….अब पब्लिक जूते मार-मार के ज़ीरो ना बना दे तो कहना”….

खैर हमें क्या?…

“जैसे कर्म करेगा…वैसे फल देगा भगवान….ये है गीता का ज्ञान….ये है गीता का ज्ञान”..

हँसते रहो:जी!…

फकीर चन्द:हाँ!…तो पूछें आप…क्या पूछना है आपको?

हँसते रहो:हमें अपने विश्वसनीय सूत्रों के जरिये जानकारी मिली है कि आपने हर तरह के विरोधों को धता बताते हुए अपनी मर्ज़ी से रिटायर होने का मन बना लिया है और साथ ही साथ ये भी पता चला है कि आप देश छोड़ कर…विदेश में सैटल होने की योजना बना रहे हैँ।

फकीर चन्द:किस गधे ने आपसे ऐसा कह दिया?….रिटायर हों मेरे दुश्मन…अभी तो उम्र ही क्या है मेरी?….पूरे छप्पन साल तक मैँ और एक्टिव रहने वाला हूँ”…

हँसते रहो:अपने ‘एम.डी.एच मसाले’ वाले बाबा की तरह” Happy

फकीर चन्द:हा…हा…हा

हँसते रहो:आप कहना चाहते हैँ कि हमें जो खबर मिली है…वो सही नहीं बल्कि गलत है?

फकीर चन्द(चौंकते हुए):कौन सी खबर?…कैसी खबर?

हँसते रहो:यही कि आपने अभी हाल ही में अपनी स्पिनिंग मिल लाला जगत नारायण के मंझले बेटे ‘सीता नारायण’ को ‘नकद नारायण’ याने के हार्ड कैश के बदले में बेच दी है।

फकीर चन्द:तो क्या उसे जैसे दो कौड़ी के मूंजीराम को उधार में बेच अपना ही डब्बा गुल कर लेता?…और वैसे भी आजकल ज़माना कहाँ है उधार में माल बेचने का?”…

हँसते रहो:जी!…आजकल लोग बातें तो बड़ी-बड़ी धन्ना सेठों जैसी करते हैँ लेकिन जब पैसे देने की बारी आती है तो वही पुराना बहाना….आज….कल-आज…कल”…

फकीर चन्द:तेरह उधार से तो नौ नकद ही बढिया हैँ भईय्या

हँसते रहो:और ये जो आपके फर्टिलाईज़र वाले कारखाने का सौदा चल रहा है…क्या वो भी आप ‘नकद नारायण’ के बदले ही करेंगे?

फकीर चन्द:ओह!…तो उसकी खबर भी आपको लग ही गई….सचमुच..काफी तेज़ हैँ आप…..

हँसते रहो:काफी नहीं….सबसे तेज़…

फकीर चन्द:हम्म!..

हँसते रहो:इसका मतलब हमारी जानकारी सही है?”

फकीर चन्द:नहीं!..पूरी तरह गलत नहीं है तो सोलह ऑने  सही भी नहीं है।

हँसते रहो:मतलब?

येसही है कि मैँ अपने तमाम काम-धन्धे बन्द कर पैसा इकट्ठा कर रहा हूँ लेकिन ये आरोप सरासर गलत है कि मैँ देश छोड़…विदेश में बसने की सोच रहा हूँ। दरअसल!…मैँ एक सच्चा देशभक्त हूँ और मुझे अपनी मातृभूमि से बेहद प्रेम और लगाव है…इस नाते देश छोड़ना तो मेरे लिए प्राण छोड़ने के बराबर है और वैसे भी इस देश में वेल्ले रहकर जो उन्नति और तरक्की की जा सकती है….वैसी किसी और देश में नहीं”

हँसते रहो:जी!…लेकिन फिर आप अपने सारे कारखाने…सारे शोरूम बेच क्यों रहे हैँ?

फकीर चन्द:पहली बात…कि मेरा माल है..मैँ जो चाहे करूँ…किसी को क्या मतलब?…

हँसते रहो:जी…

फकीर चन्द:और फिर बेचूँ नहीं तो और क्या…ऐसे ही बिना रस के इस सूखे भुट्टे को हाथ में लिए-लिए चूसता फिरूँ?…यहाँ कभी सेल्स टैक्स का पंगा तो कभी इनकम टैक्स का लोचा…कभी बिजली ना होने के कारण माल तैयार नहीं हो पाता  है तो कभी…लेबर हड़ताल कर सारी प्राडक्शन ठप्प करे पाती है….ऊपर से कभी एक्साईज़ वालों रिश्वत दो तो कभी लेबर इंस्पैक्टर का मुँह बन्द करो”

हँसते रहो:तो फिर आप ऐसी हेराफेरी करते ही क्यों हैँ कि किसी को रिश्वत दे उसका मुँह बन्द करना पड़े?”

फकीर चन्द:क्या आपको पता है कि आज की डेट में मूंग की दाल का भाव कितने रूपए किलो का है?

हँसते रहो: मैं कुछ समझा नहीं

फकीर चन्द: अरे!..आज की तारीख में कोई बन्दा अगर चाहे कि वो सिर्फ दाल-रोटी खा के ही गुज़ारा कर ले तो बिना बेईमानी के वो भी मुमकिन नहीं….

हँसते रहो:लेकिन क्या सिर्फ इस अदना सी…चसकोड़ी ज़बान के लिए अपने जमे-जमाए काम-धन्धों को बन्द कर सैंकड़ों लोगों को बेरोज़गार कर देना ठीक है?”

फकीर चन्द:अरे!…कल के बन्द होते आज बन्द हो जाएँ…मेरी बला से…मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता…ना पहले कभी मुझे इस सब की परवाह थी और ना ही अब…मुझे लोगों की रोज़गारी या बेरोज़गारी से कोई लेना-देना नहीं है

हँसते रहो: लेकिन….

फकीर चन्द: कौन सा मेरे सगे वाले हैं जो मैँ परवाह करता फिरूँ?…और वैसे भी सगे वाले कौन सा सचमुच में सगे होने का फर्ज़ निभाते हैँ?… बाहर वालों पे किसी का बस नहीं चलता तो हर कोई अपने सगे वालों को ही लूटने-खसोटने में जुटा रहता है..

हँसते रहो:लेकिन फिर भी….

फकीर चन्द:अरे…यार!..समझा कर…और वैसे भी ये सब कौन से मेरे मेन बिज़नस थे?…साईड बिज़नस ही थे ना?”..

हँसते रहो:क्या मतलब?…आपका मेन बिज़नस कोई और है?…

फकीर चन्द:और नहीं तो क्या?…

हँसते रहो:तो फिर आपका मेन बिज़नस क्या है?”…

फकीर चन्द:चन्द:टॉप सीक्रेट

हँसते रहो:लेकिन फिर भी…क्या?…पता तो चले..

फकीर चन्द:नहीं!…बिलकुल नहीं…मेरे जीते जी तो बिलकुल नहीं

हँसते रहो:लेकिन पब्लिक को मालुम तो होना चाहिए ना कि उनका ऑईडल…उनका प्रेरणा स्रोत उन्नति के इस उच्च शिखर पे कैसे विराजमान हुआ?

फकीर चन्द:नहीं!…बिलकुल नहीं…इस टेप रेकार्डर के सामने तो बिलकुल नहीं…

हँसते रहो:ओ.के!…ओ.के…मैँ इसे ऑफ किए देता हूँ…ये लीजिए…ऑफ कर दिया मैंने इसे”….

फकीर चन्द:हम्म!…वैसे मेरी इच्छा तो नहीं हो रही है तुम्हें कुछ भी बताने की लेकिन आज दिन ही कुछ ऐसा है कि अपने लाख चाहने के बावजूद..मैं तुमसे कुछ नहीं छुपा सकता

हँसते रहो:जी!…टुडे इज फ्राईडे एण्ड…इट इज माय लकी डे …

फकीर चन्द: नहीं!…ये बात नहीं है…तुम्हारी जगह कोई और भी ऐरा-गैर…नत्थू-खैरा..आज मुझसे ये सवाल करता तो मैं उससे भी कुछ नहीं छुपाता…

हँसते रहो:ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं आज के दिन में?

फकीर चन्द:आज आंशिक चन्द्रग्रहण का दिन है और मेरे ज्योतिषी ने मुझसे कहा है कि….”आज के दिन अगर तू सच बोलेगा तो तेरा कल्याण होगा”…..

हँसते रहो:ओह!…

फकीर चन्द:लेकिन ध्यान रहे कि ये सारी बात सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहनी चाहिए

हँसते रहो:जी!..बिलकुल…आप चिंता ना करें

फकीर चन्द:तो सुनो…मेरा असली…याने के मेन काम है…बच्चों…औरतों और अपाहिजों से  मंदिरों..मस्जिदों तथा भीड़ भरे तीर्थ स्थानों पर भीख मंगवाना..

हँसते रहो:क्क्या?…क्या कह रहे हैं आप?..

फकीर चन्द:क्यों?…झटका लगा ना ज़ोर से?…

हँसते रहो:जी!…तो इसका मतलब आप भिखारियों की कमाई खाते हैँ?…

फकीर चन्द:बिलकुल…

हँसते रहो:आपको शर्म नहीं आती?..

फकीर चन्द:कैसी शर्म?….और किस बात की शर्म?..अपने जीवन यापन में कैसी शर्म?

हँसते रहो:लेकिन ये धन्धा तो अवैध की श्रेणी में आता है…इसलिए इसे दो नम्बर के कामों में गिना जाता है

फकीर चन्द:अरे!…तुम्हारे इन एक नम्बर के तथाकथित धन्धों में इतनी कमाई ही कहाँ है कि हम आराम से ऐश ओ आराम की ज़िन्दगी जी सकें?….

हँसते रहो:लेकिन…

फकीर चन्द:इससे पहले की सरकार अपनी  निराशावादी नीतियों के चलते हमें बेइज़्ज़त कर हमारे हाथ में कटोरा थमाए…..क्यों ना उससे पहले हम खुद ही शान से कटोरा उठा खुद भीख मांगना चालू कर दें?

हँसते रहो:मांगना चालू कर दें या मंगवाना?

फकीर चन्द:एक ही बात है…किसी से कोई काम करवाने से पहले खुद को वो काम करना आना चाहिए

हँसते रहो:तो क्या आप भी?…..

फकीर चन्द:बिलकुल!…ये देखो….

“अल्लाह के नाम पे दे दे बाबा…मौला के नाम पे दे दे बाबा….भगवान तेरा भली करेंगे बाबा”….

“दो दिन से इस अँधे लाचार ने कुछ नहीं खाया है बाबा…कुछ तो दे दे बाबा” …

हँसते रहो:हा हा हा हा…बड़े ही छुपे रुस्तम निकले आप तो…

फकीर चन्द:थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट

हँसते रहो: लेकिन ये हालात के मारे बेचारे गरीब-गुरबा क्या खाक आपकी कमाई करवाते होंगे?…

फकीर चन्द:देखिए!…आप एक जिम्मेदार नागरिक हैँ और समाज के प्रति आपका भी कुछ कर्तव्य बनता है कि नहीं?
हँसते रहो:जी!…बिलकुल बनता है
फकीर चन्द:तो फिर बिना सोचे समझे ये  ‘गरीब-गुरबा’ जैसे ओछे और छोटे इलज़ाम लगा कर आप भिखारियों को नाहक बदनाम ना करें…

हँसते रहो:जी!..

फकीर चन्द:क्या आप जानते हैँ कि एक भिखारी पूरे दिन में कितने रुपए कमाता है?…

हँसते रहो:जी नहीं…

फकीर चन्द:तरस आता है मुझे आपके भोलेपन और नासमझी पर….आज की तारीख में कोई टुच्चा-मुच्चा अनस्किल्ड भिखारी भी पाँच-सात सौ से ज़्यादा की दिहाड़ी बड़े आराम से बना लेता है और वो भी बिना किसी प्रकार का ओवरटाईम किए हुए

हँसते रहो:तो क्या टैलैंटिड भिखारी और ज़्यादा बना लेते हैँ?

फकीर चन्द:जी!…बिलकुल …अगर आप में कोई एक्स्ट्रा हुनर…कोई अतिरिक्त कला है तो आप इससे कहीं ज़्यादा कमा सकते हैँ”…

हँसते रहो:जैसे?…

फकीर चन्द:जैसे अगर आपकी आवाज़ अच्छी है या आपका चेहरा भयानक है तो आप दूसरों से कहीं ज्यादा कम सकते हैं…

हँसते रहो:और अगर कोई किसी अंग से लाचार अथवा अपाहिज हो तो वो भी दूसरों से इस भिखमंगी की रेस में आगे निकल सकता है?

फकीर चन्द: बिलकुल

हँसते रहो:आवाज़ का सुरीला होना ज़रूरी होता है?..

फकीर चन्द:नहीं!…बिलकुल नहीं…लेकिन बस..आपकी आवाज़ सबसे अलग…सबसे जुदा होनी चाहिए…

हँसते रहो:बेशक!..वो निहायत ही भद्दी और कर्कश क्यों ना हो?

फकीर चन्द:जी!..

हँसते रहो:लेकिन कर्कश और बेसुरी आवाज़ वालो को भला कौन भीख देगा?

फकीर चन्द:अरे!…यही तो तुम्हें नहीं मालुम…कुछ लोग तरस खा के भीख देंगे तो कुछ तंग आ के

हँसते रहो:तंग आ के?

फकीर चन्द:जी!…हाँ…तंग आ के…कुछ लोग तो भिखारियों को सिर्फ इसलिए भीख दे देते हैँ कि उनको ज़्यादा देर तक उनकी कसैली आवाज़ ना सुननी पड़े

हँसते रहो:क्या एक सफल भिखारी बनने के लिए चेहरे का भयानक होना भी ज़रूरी है?

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फकीर चन्द:नहीं!..ऐसी कोई कम्पलसेशन नहीं है हमारे बिज़नस में कि आपका चेहरा भयानक ही हो…

अगर आप उम्र में बच्चे हैँ तो आपका चेहरा मासूमियत भरा होना चाहिए और अगर आप एक फीमेल हैँ तो आपके गुरबत लिए चेहरे में एक हल्का सा सैक्सी लुक होना चाहिए..एक प्यारी सी कशिश होनी चाहिए..

हँसते रहो:ओह!…

फकीर चन्द: वैसे…ज़्यादातर हमने इस सब के लिए प्रोफैशनल मेकअप मैन रखे होते हैँ जो ज़रूरत के हिसाब से चेहरों पर कालिख वगैरा पोत उन्हें आवश्यक लुक देते रहते हैँ…

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हँसते रहो:ओह!…वैरी स्ट्रेंज…

फकीर चन्द:जी!…

हँसते रहो:अभी आपने कहा कि भिखारी का अपाहिज या लाचार होना भी एक्स्ट्रा क्वालीफिकेशन में आता है

फकीर चन्द:जी!…बिलकुल…अब आम आदमी तो उसी पे तरस खाएगा ना जो किसी ना किसी कारणवश लाचार होगा…किसी हट्टे-कट्टे और मुस्सटंडे पे तो आप भी अपनी कृपा दृष्टी नहीं डालेंगे

हँसते रहो:इसका मतलब जो जन्म से तन्दुरस्त है वो कभी भी सफल भिखारी नहीं बन सकता?

फकीर चन्द:ऐसा मैँने कब कहा?

हँसते रहो:तो फिर?…

फकीर चन्द:अरे भईय्या!…आज के माड्रन ज़माने में पईस्सा फैंको तो क्या नहीं हो सकता?…

हँसते रहो: क्या मतलब?

फकीर चन्द:हमने अपने पैनल में कुछ अच्छे टैक्नीकली क्वालीफाईड डाक्टरों को भी भर्ती किया हुआ है

हँसते रहो:वो किसलिए?

फकीर चन्द:अरे!..वोही तो हमारी डिमांड के हिसाब से नए उदीयमान भिखारियों के अंग-भंग करते हैँ….

हँसते रहो:ओह!….लेकिन इस सब में काफी खर्चा आता होगा ना?

फकीर चन्द:हाँ!…आता तो है लेकिन क्या करें?….मजबूरी जो ना कराए…अच्छा है….

हँसते रहो: हम्म!…

फकीर चन्द:लेकिन हम भी कौन सा अपने पल्ले से ये सब खर्चा करते हैँ?…

हँसते रहो:तो फिर?…

फकीर चन्द:फाईनैंस करा लेते हैँ

हँसते रहो:बैंक से?…

फकीर चन्द:नहीं!…रिज़र्व बैंक ने सभी बैंको पर इस तरह के अंग-भंग के लिए लोन देने पर आजकल पाबन्दी लगा रखी है

हँसते रहो:रहो:तो फिर?..

फकीर चन्द:कुछ एक है भले मानस…जो डाक्टरी के धन्धे के साथ-साथ ब्याज पे पैसा चढाने का काम भी करते हैँ…उन्हीं से करा लेते हैँ फाईनैंस…

हँसते रहो:लेकिन उनकी ब्याज दर तो कुछ ज़्यादा नहीं होती होगी?…

फकीर चन्द:होती है लेकिन औरों के लिए…सेठ फकीर चन्द की गुडविल ही ऐसी है कि कोई फाल्तू ब्याज मांगने की जुर्रत ही नहीं करता…

हँसते रहो:ओह!…

फकीर चन्द: बस!..इस सब के बदले हमें कई कागज़ातों पे अँगूठा टेक ऐग्रीमैंट करना पड़ता है उनके साथ….

हँसते रहो:ऐग्रीमैंट?…किस तरह का ऐग्रीमैंट?”

फकीर चन्द:यही कि हम अपने क्लाईंटों के हाथ…नाक…कान….पैर तथा उँगलियाँ वगैरा हमेशा उन्हीं से कटवाएंगे और जब तक समस्त कर्ज़ा सूद समेत चुका नहीं देंगे…तब तक किसी और महाजन या बैंक का मुँह तक नहीं ताकेंगे….

हँसते रहो:लेकिन क्या ये अँगूठा टिकाना ज़रूरी होता है?

फकीर चन्द:निहायत ही ज़रुरी होता है….धन्धे में तो वो अपने बाप पे भी यकीन नहीं करते हैँ…

हँसते रहो:ओह!…

फकीर चन्द:इसलिए सिग्नेचर के साथ-साथ अँगूठा टिकाना भी बहुत ज़रूरी होता है…

हँसते रहो:क्या इस धन्धे में इतनी कमाई होती है कि ब्याज वगैरा के खर्चे निकाल के भी काफी कुछ बच जाए?

फकीर चन्द:अरे!…कमाई तो इतनी है कि हमारी सात पुश्तों को भी इस धन्धे के अलावा कुछ और करने की ज़रूरत ही नहीं है लेकिन ये स्साले!…मॉफिया और पुलिस वाले ढंग से जीने दें तब ना….

हँसते रहो:ओह!….

फकीर चन्द:हमारी कमाई का एक मोटा हिस्सा तो इन्हीं को हफ्ता देने में चुक जाता है…

हँसते रहो:अगर इन्हें ना दें तो?

फकीर चन्द:ना दें तो शारीरिक तौर पे मरते हैँ और…दें तो आर्थिक तौर पे मरते हैँ

हँसते रहो:ओह!..आपकी सारी बातें सही हैँ लेकिन एक बात समझ नहीं आ रही कि आप इतने भिखारियों का जुगाड़ कैसे करते हैँ?

फकीर चन्द:अरे!..जैसे हर धन्धे में सप्लायर होते हैँ…ठीक वैसे ही हमारे इस धन्धे में भी सप्लायर होते हैँ जो समय-समय पर हमारी माँग के हिसाब से गली-मोहल्लों से अबोध व मासूम बच्चों का अपहरण कर उन्हें गायब करते रहते हैँ

हँसते रहो:अगर अबोध बच्चों का जुगाड़ नहीं हो पाए तो?

फकीर चन्द:तो थोड़े बड़े बच्चों को भी उठवा लिया जाता है और जेब तराशी से लेकर उठाईगिरी तक के धन्धे में लगा दिया जाता है।

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हँसते रहो:ओह!…इसका मतलब आपके धन्धे में …हर तरह का मैटिरियल खप जाता है

फकीर चन्द:जी!…बिलकुल…चाहे वो दूध-पीता न्याणा हो या फिर हो अधेड़ उम्र का उम्रदराज़…सबके लिए कोई ना कोई काम निकल ही आता है

हँसते रहो:गुड!…लेकिन जिन्हें आप ऐसे गली-मोहल्लों से ज़बरदस्ती उठवा लेते हैँ…वो क्या आसानी से मान जाते होंगे आपके कहे अनुसार करने के लिए?

फकीर चन्द:नहीं …लेकिन डण्डे के ज़ोर के आगे भला किसकी चली है…जो उनकी चलेगी?….

हँसते रहो:क्या मतलब?

फकीर चन्द:ऐसे अड़ियल टट्टओं को सबक सिखाने के लिए हम उनकेहाथ-पैर तोड़ डालते हैँ और अगर फिर भी ना माने तो ‘प्लास’ या ‘जमूर’ की मदद से नाखुन तक नुचवा डालते हैँ…

हँसते रहो:ओह!…तो क्या सभी के साथ ऐसा बर्ताव?…

फकीर चन्द:नहीं!…इतने निर्दयी भी नहीं हैं आप कि सभी को एक ही फीते से नाप दें…

हँसते रहो: मैं कुछ समझा नहीं…

फकीर चन्द:ऐसा घनघोर अनर्थ तो हम बस चौधरी बन रहे ढेढ स्याणों के  साथ ही करते हैँ…बाकि सब तो डर के मारे अपने आप ही हमारी ज़बान बोलने लगते हैँ

हँसते रहो:ओ.के!…तो क्या सिर्फ बच्चों को ही इस काम में लगाया जाता है?

फकीर चन्द:नहीं!..डिमांड के हिसाब से कई बार नाबालिग लड़्कियों को भी बहला-फुसला कर छोटे शहर और कस्बों से लाया जाता है…किसी को शादी करने का लालच दे कर…तो किसी को अच्छी नौकरी लगवाने के नाम पर….और किसी-किसी छम्मक-छल्लो टाईप की लड़की को फिल्मों में हेरोईन बनाने का झाँसा दे कर भी अपने जाल में फँसाया जाता है

हँसते रहो:हम्म!…लेकिन इतनी लड़कियों का आप क्या करते हैँ?…क्या सब की सब भीख….

फकीर चन्द:नहीं!…इतने बेगैरत भी नहीं हम कि इन फूल सी नाज़ुक और कोमल कलियों से ये भीख माँगने जैसा ओछा और घिनौना काम करवाएँ….

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हँसते रहो:तो?

फकीर चन्द:हमारी दिल से पूरी कोशिश होती है कि इन्हें कोई भी ऐसा काम ना दिया जाए जो इनके ज़मीर को गवारा ना हो

हँसते रहो:दैट्स नाईस..

फकीर चन्द:इसलिए…हर एक की काबिलियत और टैलेंट को अच्छी तरह भांपने के बाद ही उन्हें उसी तरह का काम सौंपा जाता है…जिस काम के वो लायक होती हैँ

हँसते रहो:जैसे?

फकीर चन्द:जैसे अगर कोई तेज़-तरार और फुर्तीली होती है तो उसे भीड़ भरे बाज़ारों में उठाईगिरी के लिए तथा बसों-ट्रेनों में जेब तराशी के लिए भेजा जाता है…

हँसते रहो:ओह!…

फकीर चन्द:अगर किसी में दूसरों को अपने रूपजाल से सम्मोहित करने की कला होती है तो उसे हाई सोसाईटी की कॉल गर्ल बना शहर के नामी क्लबों…गैस्ट हाउसों तथा बॉरों में अमीरज़ादों को रिझा…उनकी जेबें ढीली करने के वास्ते भेजा जाता है

हँसते रहो:लेकिन क्या आपकी ये कृपा दृष्टी सिर्फ और सिर्फ महिलाओं पर ही केन्द्रित रहती है…पुरुषों पर नहीं? ?

फकीर चन्द:नहीं!…बिलकुल नहीं…हमारी नज़र में लड़के-लड़कियाँ सब बराबर हैँ…यहाँ ना कोई छोटा है…और ना ही कोई बड़ा

हँसते रहो:लेकिन आपने सिर्फ लड़कियों के ही बारे में विस्तार से बताया…इसलिए कंफ्यूज़न सा क्रिएट होने लगा था…

फकीर चन्द:ये जो आप बड़ी-बड़ी रैड लाईटों पे हॉकरो की जाम लगाती भीड़ देखते हो ना?..उनमें ज़्यादातर लड़के ही होते हैँ

हँसते रहो:तो क्या ये भी आप ही के चेले-चपाटे होते हैँ?…

फकीर चन्द:बिलकुल!…ये तो तुम जानते ही होगे कि लड़के अच्छी सेल्समैनी कर लेते हैँ…इसलिए उन्हें चौक वगैरा पे माल बेचने में लगा दिया जाता है

हँसते रहो:लेकिन आप लड़कियों को भी किसी से कमतर ना आँके…इनमें भी कई ऐसी होती हैँ जो बात-बात में ही मरे हुए गधे को ज़िन्दा कह बेच डालें

फकीर चन्द:जी!…ये तो है

हँसते रहो:लेकिन इन हॉकरों से ये रुमाल…संतरे…मिनरल वाटर….खिलौने और टिशू पेपर वगैरा बिकवा के आपको मिलता ही क्या होगा कि आपकी झोली भी भर जाए और इनका पेट भी खाली ना रहे?

फकीर चन्द:अरे!..बुद्धू!..ये सब दिखावा तो वाहन चालक और सवारियों की धूप और गरमी से बेसुध हुई आँखों में धूल झोंकने के लिए होता है..

हँसते रहो:वो कैसे?

फकीर चन्द:इनकी ही मदद से कुछ ना कुछ उल्टा-सीधा शोर-शराबा कर के चालक समेत सभी का ध्यान बंटाया जाता है कि मौका लगते ही गाड़ी में से ब्रीफकेस…थैला…झोला या जो भी हाथ लगे गायब किया जा सके

हँसते रहो:गुड…लेकिन मैँने तो उन्हें कई बार आपस में ही लड़ते-भिड़ते और खूब गाली-गलौच करते देखा है

फकीर चन्द:हा…हा…हा…ये भी हमारे बिज़नस की एक उम्दा टैक्नीक है…

हँसते रहो: क्या मतलब?”…

फकीर चन्द:अरे यार!…हर किसी को दूसरे के फटे में टांग अड़ाने की आदत होती है कि नहीं?

हँसते रहो:जी!…होती तो है…

फकीर चन्द:बस!..हम लोगों की इस कॉमन ह्यूमन हैबिट का फायदा उठाते हैँ और सबका ध्यान भंग कर अपना काम बड़ी ही सफाई और नज़ाकत से कर जाते हैँ

हँसते रहो:ओह!…लेकिन आप चाहे कुछ भी कहें…मुझे इस काम का कोई स्टैंडर्ड…कोई भविष्य…कोई फ्यूचर नज़र नहीं आता

फकीर चन्द:क्या बात करते हो?…आज की डेट में भीख मांगना या मंगवाना कोई छोंटा-मोटा नहीं बल्कि एक वैल आर्गेनाईज़्ड…वैल प्लैंनड धन्धा है

हँसते रहो:वो कैसे?

फकीर चन्द:बकायदा शहर के नामी-गिरामी ‘सी.ए’ तथा ‘एकाउंटैंट’ तक खुद आ के हमारी ‘बैलैंसशीट’ और ‘प्राफिट एण्ड लास एकाउंट’ मेनटेन करते हैँ

हँसते रहो:ओह!…

फकीर चन्द:आज देश का पढा-लिखा तबका भी खुशी-खुशी हमारी जमात में शामिल हो रहा है…

हँसते रहो:अच्छा?…

फकीर चन्द:बेशक!…उनके काम करने का तौर तरीका बाकि सब से जुदा है और होना भी चाहिए क्योंकि सब धन्धों की तरह इसमें कम्पीटीशन न हो तो बेहतर

हँसते रहो:तो ऐसे लोग क्या करते हैँ कि पब्लिक की सहानुभूति उन्हें मिले?

फकीर चन्द:ऐसे लोग एकदम वैल ड्रैस्ड…अप टू डेट बनकर बिलकुल अलग ही स्टाईल से मिनटों में आप जैसे लोगों को फुद्दू बना आपकी सहानुभूति हासिल कर…आपसे इस अन्दाज़ में पैसे ऐंठ लेते हैँ कि आपको इल्म ही नहीं होता

हँसते रहो:वो कैसे?…

फकीर चन्द:अरे!…उनके पास एक से एक नायाब बहाना तैयार रहता है गढने के लिए

हँसते रहो:जैसे?

फकीर चन्द:जैसे कभी वो रोनी सूरत बना बस अड्डे या रेलवे स्टेशन से सामान चोरी हो जाने के नाम पर आप से पैसे ऐंठ लेते हैँ….तो कभी जेब कट जाने के नाम पर…तो कभी रास्ता भटक अनजान शहर में पहुँच जाने के नाम पर

हँसते रहो:गुड

फकीर चन्द:हमारे होनहार प्यादों में से जो कुछ थोड़े-बहुत लड़ने-भिड़ने में अव्वल रहते हैँ उन्हें किसी लोकल गैंग या फिर अंतर्राजीय मॉफिया में प्रापर ट्रेनिंग लेने के लिए भेज दिया जाता है ताकि वो वहाँ से अव्वल नम्बरों से पास हो शार्प शूटर या नक्सली जैसी काबिले तारीफ  डिग्री हासिल कर के जब बाहर निकलें तो उन्हें उनके भविष्य को उज्वल बनाने में इससे मदद मिले

हँसते रहो:अरे!..वाह…इसका मतलब तो आप देश की नौजवान पीढी को रोज़गार मुहय्या करवाने में मदद कर रहे हैँ

फकीर चन्द:देश की क्या…हम से तो विदेशी भी अछूते नहीं हैँ…

हँसते रहो:मतलब?

फकीर चन्द:हम किसी से किसी भी किस्म का कोई भेदभाव नहीं करते इसलिए हमारी नज़र में सब बराबर होते हैं …इसीलिए हम बिना किसी भी प्रकार के जातीय भेदभाव के  उन सभी कर्मठ स्वंयसेवकों की भर्ती बेधड़क हो के कर रहे हैँ…जो हम में शामिल हो अपने साथ-साथ …अपने देश का नाम भी रौशन करना चाहते हों…भले ही वो बाँग्लादेश से हों…या फिर नेपाल से हों या फिर वो पाकिस्तान से भी हों तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं…..

हँसते रहो:हैरत की बात है कि आपको पाकिस्तान के नाम से भी ऐतराज़ नहीं

फकीर चन्द:एक्चुअली!….सच कहूँ तो ये आपस में नफरत भरा प्रापोगैंडा तो सिर्फ दोनों देशों के नेताओं द्वारा अपनी-अपनी गद्दी को बचाने भर के लिए ही किया जाता है और फिर हमारी आस्था…हमारा विश्वास वृहद  भारत में है ना कि संकुचित भारत में

हँसते रहो:दैट्स नाईस

फकीर चन्द:मैँ तो चाहता हूँ कि भारत की हर गली…हर कूचे से …हर मकान से …हर आंगन में से कम से कम एक भिखारी निकले जो हमारे काम…हमारे धन्धे का नाम पूरे विश्व में रौशन करे

हँसते रहो:जी!…वैसे देखा जाए तो कौन भिखारी नहीं है आज के ज़माने में?

फकीर चन्द:मैं कुछ समझा नहीं

हँसते रहो:क्या भारत अमेरिका से यूरेनियम की भीख नहीं माँग रहा है?…या फिर अमेरिका पाकिस्तान से लादेन को सौंप देने की भीख नहीं मांग रहा है?

फकीर चन्द:बिलकुल!…जिसे देखो वही कोई ना कोई भीख मांग रहा है कोई आज़ाद कश्मीर की….तो कोई खालिस्तान की…कोई गोरखा लैंड की तो कोई पृथक झारखण्ड प्रदेश की…

हँसते रहो:हाँ!..सभी तो देश के टृकड़े-टुकड़े करने पे तुले हैँ

फकीर चन्द:फिलहाल तो सारा देश कामन वैल्थ गेम्ज़ में अपने खिलाड़ियों से मैडल लाने की भीख माँग रहा है

हँसते रहो:वैसे देखा जाए तो इस भीख माँगने के ट्रेनिग हमें बचपन से ही…अपने घर से ही मिलनी शुरू हो जाती है

फकीर चन्द:वो कैसे?

हँसते रहो:जब घर की औरतें अपने बच्चों को पड़ोसियों के घर कभी एक कटोरी चीनी….तो कभी लाल मिर्च…तो कभी आटा….तो कभी एक चम्मच मट्ठा माँगने के लिए भेजती हैँ तो ये भी तो एक तरह से भीख मांगना ही हुआ ना?

फकीर चन्द:अरे!…यार…बड़ी ऊँची सोच है तुम्हारी तो…

हँसते रहो:थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट

फकीर चन्द:मेरा तो कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं गया…अब से मैँ अपने हर लैक्चर…हर मीटिंग में इस बात का ज़रूर जिक्र किया करूँगा

“ट्रिंग…ट्रिंग”….

फकीर चन्द:हैलो….

“हाँ जी!…बोल रहा हूँ…बस…यही कोई दस मिनट में पहुँच जाऊँगा

फकीर चन्द:ऐसा है कि अब ये साक्षातकार-वाक्षातकार वगैरा यहीं खत्म करते हैँ…कोई ज़रुरी काम आन पड़ा है

हँसते रहो:जी!…

फकीर चन्द:अच्छा तो हम चलते हैँ…..

हँसते रहो:फिर कब मिलोगे?….

फकीर चन्द:ये इंटरवियू छपने के बाद…

हँसते रहो:ज़रूर…

फकीर चन्द:बाय…

हँसते रहो:ब्बाय…

“हाँ!… फकीर चन्द जी…हम ज़रूर मिलेंगे इस साक्षातकार के छपने के बाद लेकिन आपके या मेरे दफ्तर में नहीं बल्कि जेल में…आप क्या सोचते थे कि मैँ घर से एक ही टेप रेकार्डर ले के निकला था?”…

“ये!…ये देखो…यहाँ अपनी इस अफ्लातूनी जैकेट के अन्दर मैँने एक मिनी वीडियो कैमरा और एक वॉयस रेकार्डर भी छुपाया हुआ है”…

“अब मुझे बेताबी से इंतज़ार रहेगा आप जैसे @#$%ं&* को जेल की सलाखों के पीछे देखने का”….

संजू:अरे!…क्या हुआ?..ये नींद में बड़बड़ाते हुए किसे जेल की सलाखों के पीछे करने की बात कर रहे हो?…

“उठो!…सुबह के आठ बज चुके हैँ…और याद है कि नहीं?…आज तुम्हें शहर जे जाने-माने समाजसेवी श्री फकीर चन्द जी का साक्षातकार लेने जाना है”…

राजीव:ओह!…

संजू:कपड़े पहनो और पहुँचो फटाफट…बड़ी मुश्किल से राज़ी हुए हैँ इंटरविय्यू के लिए….अपने ब्लॉग को चमकाने का अच्छा मौका हाथ लगा है तुम्हारे…इसे व्यर्थ में ही ना गँवा देना

राजीव:मालुम है बाबा

संजू:जानते तो हो ही कि अपने इलाके का सबसे बिगड़ैल शहज़ादा है…कहीं देर से आने की वजह से सनक गया तो साफ मना कर देना है उसने…

राजीव: हम्म!…

संजू: कहीं अपने ढीलेपन की वजह से इस सुनहरे मौके को गवां ना देना…

राजीव:बस!…निकल रहा हूँ…ज़रा ये कैमरा और वॉयस रेकार्डर अपनी जैकेट के अन्दर छुपा लूँ…

संजू:सुनो!…मैँने तो आपकी नई पोस्ट की पंच लाईन भी तैयार कर ली है

राजीव:क्या?

“खबरों में से खबर सुनो…..खबर सुनो  तुम बिलकुल सच्ची

‘फकीर चन्द’ पकड़ा गया

नाचो गाओ खुशी मनाओ…खाओ फलूदा और पिओ लस्सी”

हा….हा….हा….हा

***राजीव तनेजा***

Rajiv Taneja

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