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जय बोलो बेईमान की -राजीव तनेजा

हंसी ठट्ठा
हंसी ठट्ठा
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आज मुझसे…मेरी कामयाबी से जलने वालों की इस पूरी दुनिया में कोई कमी नहीं है।वो मुझ पर तरह-तरह के उल्टे-सीधे इलज़ाम लगाकर मेरी हिम्मत…मेरे हौंसले…मेरे आगे बढने के ज़ुनून को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैँ…

“हुंह!…पागल कहीं के…मुझसे?…मुझसे मुकाबला करना चाहते हैं?”….

“बड़ी अच्छी बात है ये तो लेकिन पहले मेरे सामने ठीक से खड़े होने की हिम्मत तो जुटा लें कम से कम …बाद में  आगे की सोचें”…

“हुंह!…स्साले…निठल्ले कहीं के”…

“अरे!…आसमान पर थूकने से पहले उसका नतीजा तो जान लो”…

बचपन से लेकर आज तक ..मैँने कभी भी इन जैसे आलसियों के माफिक खाली बैठे बैठे कुर्सी तोड़ने की नहीं सोची।जहाँ तक मुझे याद है…होश संभालते ही मैं अपने पैरों पे खड़ा हो गया था।बूट पॉलिश करने से लेकर ढाबों तक में बर्तन माँजे मैँने|बाईक से लेकर कार तक पे फटका मारने जैसे किसी भी छोटे-बड़े काम से मैँने कभी गुरेज़ नहीं किया और इसी तरह कदम दर कदम बढते हुए एक दिन मैँ एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में बेलदारी करने लगा|
वहाँ ठेकेदार की बीवी से इश्क लड़ा उसे पटाया और जल्द ही वो अपने तमाम गहने-लत्ते ले मेरे साथ भाग निकली।ठेकेदार पहुँच वाला था…सो!…हमारी दौड़ शुरू हो गई…हम आगे-आगे और वो लट्ठ लिए हमारे पीछे-पीछे…कभी इस डगर तो कभी उस डगर…कभी इस शहर तो कभी उस शहर|धीरे-धीरे मैँ कोठियों वगैरा में सफेदी-डिस्टैम्पर के छोटे-मोटे ठेके लेने लगा।वहीँ एक ठेकेदार के साथ यारी गाँठ मैँने पुरानी बिल्डिंगों की तुड़ाई के ठेके भी लेने चालू कर दिए और उसमें खूब नोट कमाए।उसके बाद तो जनाब मेरे रास्ते में जो-जो आता गया…मैं उसे ही अपनी कामयाबी की सीढी बनाता हुआ आगे बढता गया।खुदा गवाह है मेरा कि मैँने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा कि मेरे पैरों के नीचे कौन कुचला जा रहा है और कौन नहीं?

नतीजन!…आज मैँ देश का माना हुआ डिमालिशन काँट्रैक्टर कम एस्टेट डवैल्पर हूँ।

“क्या कहा?”…

“बीवी का क्या हुआ?…

“अरे!..कई साल पहले चलती लॉरी के नीचे आ जाने से अचानक उसकी मौत हो गई थी…आपको पता नहीं?”…

“मैंने खुद ही तो उसे….

“अरे!…हाँ!…याद आया…अगले महीने…उसी केस की फाईनल हीयरिंग पे तो मुझे कोर्ट में पेश होना है”…

“अब बेशक दिखावे के लिए ही सही लेकिन डर तो लग ही रहा है कि पता नहीं ऊँट किस करवट बैठे?”…

“खैर!..जो भी हो …पता है मुझे कि उसके घर देर है पर अन्धेर नहीं….सरकारी वकील से लेकर गवाहों तक और यहाँ तक कि माननीय जज साहब तक मेरा चढावा जो पहुँच चुका है।इसलिए सज़ा का तो सवाल ही नहीं पैदा होता”
”आखिर!…कब तक?..कब तक मैँ उस बुड्ढी खूसट के पल्लू से बँधा रहता? कई बार समझाया भी पट्ठी को लेकिन वो स्साली!…सीधे-सीधे प्यार-मोहब्बत से तलाक देने को राज़ी ही नहीं थी…उसकी मौत का मुझे भी दुख है लेकिन मेरे पास इसके अलावा और चारा भी क्या था?…वो ‘रोज़ी’ की बच्ची जो उसके जीते जी मेरा बिस्तर गर्म करने को राज़ी ही नहीं थी”
“खैर छोड़ो!..इन सब बातों को…ये केस-कास तो मुझ पर आए दिन चलते रहते हैँ…इनका क्या?”

कभी मुझ पर घटिया निर्माण सामग्री इस्तेमाल करने के इलज़ाम लगे… तो कभी आदिवासी मज़दूरों से बँधुआगिरी करवाने के…लेकिन मैँने कभी किसी चीज़ की परवाह नहीं की।जैसे दूसरे ठेकेदारों द्वारा बनाई गई ईमारतें गिरती रहती हैँ…ठीक वैसे ही मेरी भी दो-चार गिर गई तो कौन सी आफत आन पड़ी?


अब कौन समझाए अपने देश की इस बुद्धू पब्लिक को कि इस मायावी संसार में हर चीज़ नश्वर है।जो चीज़ पैदा हुई है उसे आज नहीं तो कल खत्म होना ही है…कोई अपने तय समय से पहले खत्म हो जाती है तो कोई तय समय के बाद लेकिन इतना ज़रूर पक्का है कि…हर एक का अंत समय आना ही है।…
अब अगर मेरे द्वारा बनाए गए दो-चार फ्लाई ओवर ज़्यादा समय तक ट्रैफिक का बोझ झेल नहीं पाए तो इसमें मैँ क्या करूँ? क्या डाक्टर ने कहा था सरकारी इजीनियरों को कि वो रातोंरात अपना कमीशन 30%  से बढा कर 40% कर दें? मुझे मजबूरन सिमेंट में रेत मिलाने के बजाय….रेत में सिमेंट मिलाना पड़ा तो इसमें मैँ क्या करूँ? पता नहीं इन मीडिया वालों को किसी की फोकट में पब्लिसिटी करके क्या मिलता है? और उनके बहकावे से आकर पब्लिक बेचारी बेकार में ही अपना कीमती वक्त ज़ाया कर मुफ्त में होहल्ला कर बैठती है।
लेकिन इस सारे ड्रामे से मुझे फायदा ही हुआ है…नुकसान नहीं क्योंकि मीडिया और पब्लिक की इस मिली जुली साठगाँठ ने मुझ जैसे अदना से बिल्डर को रातोंरात सैलीब्रिटी जो बना दिया है।अब तो नए-नए बिल्डर मुझसे हाथ मिला मेरे ऑटोग्राफ लेने को उतावले रहते हैँ और मेरी इन्हीं उपलब्धियों के चलते मुझे पाँच साल के लिए बिल्डर्स ऐसोसिएशन का प्रधान भी बना दिया गया है| हाँ!..तो मैँ बात कर रहा था अपने कैरियर की…अपनी कामयाबी की तो ये बात काबिले गौर है कि इस सारे…नीचे से ऊपर उठने के खेल में मैँने पूरी ईमानदारी…पूरी ऐहतिहात बरती।

अब जब खुला खेल फरुखाबादी का चल ही निकला है तो लगे हाथ मैँ भगवान को हाज़िर-नाज़िर जान कर एक बात और साफ करना चाहूँगा कि अपने पूरे कैरियर में मैँने कभी किसी से हराम का पैसा नहीं लिया… सिर्फ और सिर्फ अपनी मेहनत का…अपने हक का ही पैसा लिया।खुदा गवाह है कि हमेशा मेरे ये हाथ देने के लिए ही आगे बढे हैँ…कभी लेने के लिए नहीं।अगर मेरी बात का यकीन ना हो तो किसी दिन समय निकाल के चलो मेरे साथ किसी भी सरकारी दफ्तर में।ऊपर से नीचे तक…चपरासी से लेकर बड़े बाबू तक …सभी एक टाँग पर खड़े होकर सलाम बजाते ना दिखाई दें तो फिर कहना।
और ऐसा वो करे भी क्यों ना?…सीधी बात है भाई कि हर जगह…’इस हाथ दे और उस हाथ ले’ वाला तरीका ही कामयाब रहता है|शुरू से लेकर अब तक सबकी मदद जो करता आया हूँ मैँ|जब भी ..जिस किसी ने भी…जो-जो माँगा…बेहिचक…बिना कोई सवाल किए चुपचाप दे दिया।भले ही इस सब के बदले उन्होंने मेरे वो सब जायज़-नाजायज़ काम किए जो शायद बिना पैसे दिए होने लगभग नामुमकिन ही थे जैसे…कई बार उन्होंने मुझे ब्लैक लिस्ट होने से बचाया तो कई बार नकली एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट… बिना काबिलियत के कँस्ट्रक्शन से लेकर डिमॉलिशन तक के लाईसैंस…वगैरा…वगैरा|

  • अभी पिछले साल की ही लो ..दिल्ली मैट्रो में तुड़ाई के ठेके लेने के लिए ज़रूरी शर्त थी कि….
    ठेकेदार के पास रास्ते में आने वाली बिल्डिंगों को तोड़ गिराने के लिए ज़रूरी साज़ो सामान होना चाहिए जैसे…’जे.सी.बी’ मशीने…बुलडोज़र वगैरा…वगैरा लेकिन…अपुन के पास एक भी मशीन ना होने के बावजूद भी सारे के सारे ठेके मुझे ही मिले और अपन ने भी सबको खुश करने में किसी किस्म की कँजूसी नहीं बरती।जहाँ काम पाँच हज़ार से भी चल सकता था…वहाँ मैँने दस हज़ार भी बेझिझक खर्चा कर दिए।आखिर!..पेट तो उनके साथ भी लगा हुआ है…उन्होने भी अपने बच्चे पालने हैँ।
    “क्यों?…है कि नहीं?”…
    अपनी सरकार आखिर देती ही क्या है अपने कर्मचारियों को जो वो ईमानदारी बरतें…संयम बरतें?
    कहने को आप जो भी कहें लेकिन सच्चाई यही है कि अगर ढंग से जिया जाए तो सरकारी तनख्वाह में एक हफ्ता भी ठीक से ना गुज़रे। मोबाईल से लेकर इंटरनैट तक और …फास्टफूड से लेकर केबल टीवी तक के ही खर्चे इतने हैँ कि तनख्वाह पहले हफ्ते में ही फुर्र होती दिखती है।ऐसे में अगर रिश्वत ना लें तो बाकि के बचे हफ़्तों में क्या मन्दिरों और गुरुद्वारों में छन्नकणें बजा के अपना गुज़ारा करें?”…
    ऊपर से ये लम्बी गाड़ियाँ का सिर उठाता मँहगा शौक…उफ!…तौबा|अब ऐसी हालत में बन्दा रिश्वत ना ले तो क्या भूखों मरे? ठीक है!..माना कि आजकल ‘पे कमीशन’ की बदौलत तनख्वाहें पहले से कई गुणा ज़्यादा बढ चुकी हैँ और आगे भी बढने की पूरी उम्मीद है लेकिन इस बात पे गौर करना भी निहायत ही ज़रूरी है कि मँहगाई कितनी तेज़ी से बिना रुके बढती चली जा रही है?
    प्याज-टमाटर के दामों में लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही है…खाद्यानों की कीमतें काबू में नहीं आ रही हैं …पहले ही आम इनसान फाईनैंस कम्पनियो के कर्ज़ों के बोझ तले दबा जा रहा है और ऊपर से अपनी सरकार भी कभी पेट्रोल-डीज़ल के तो कभी सिलेंडर के दाम बढ़ा उसके ताबूत में कील पे कील ठोकने से परहेज़ नहीं कर रही है।
    अब कहने वाले कहने को तो ये भी कह सकते हैँ कि आम पब्लिक की भारी नाराजगी के चलते दिल्ली सरकार ने अपने करों में कटौती करते हुए डीज़ल के दाम अढाई रूपए प्रति लीटर तक घटा भी तो दिए हैँ।तो सरकार मेरी!…अढाई रूपए प्रति लीटर की छुटभैय्या छूट से आखिर होता ही क्या है? इससे से ज़्यादा के तो हम रोजाना ‘पान’..’तंबाकू’ और ‘गुट्खे’ चबा जाते हैँ।नमकीन और स्नैक्स को ना जोड़े तो भी ‘दारू’..’विहस्की’…’सोडे’ और ‘रम’ का खर्चा ही बहुतेरा आ जाता है।
    आजकल खर्चे ही इतने हैँ कि पैसा जहाँ से भी…जैसे भी…जितना मर्ज़ी आ जाए… कभी पूरा ही नहीं पड़ता।इसलिए इन बेचारे मज़लूम सरकारी कर्मचारियों का रिश्वत लेने का हक तो बनता ही है ना बॉस? मेरे हिसाब से रिश्वत के हर रूप …चाहे वो नकद नारायण हो…या फिर किसी भी छोटे-बड़े गिफ्ट की शक्ल अख्तियार किए हुए हो को…कानूनन जायज़ ठहराते हुए हर छोटे-बड़े दफ्तर के बाहर ये दो तख्तियाँ अवश्य लटकवा देनी चाहिए कि…
    ज़रूरी सूचना:
  • रिश्वत लेना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और…
  • यहाँ बिना रिश्वत के एक पन्ना भी इधर से उधर नहीं होता


और लगे हाथ जो कर्मचारी ईमानदारी से अपना काम करते हुए रंगेहाथ पकड़ा जाए उसके लिए….
ऐसी सख्त से सख्त सज़ा का प्रावधान होना चाहिए कि उसकी रूह तक काँप उठे। ऐसा करना निहायत ही ज़रूरी है क्योंकि इस सब से हमारी आने वाली नस्लों को सबक मिलेगा और वो कभी भी रिश्वत ना लेने जैसा घिनौना काम करने की जुर्रत कर पाएँगी।
मैँ तो कहता हूँ कि…पागल हैँ वो…नादान हैँ वो…जिनके लिए ईमानदारी ही सबसे बड़ी दौलत है…सबसे बड़ी नेमत है…
बेवाकूफ कहीं के!…इतना भी नहीं जानते कि खोखले आदर्शो से पेट नहीं भरा करते।

“अरे!…किस-किस से लड़ोगे तुम?…किस-किस को समझाओगे तुम?…पूरा का पूरा सिस्टम ही रिश्वतखोरों से भरा पड़ा है”..
“घिन्न आती है तुमसे मुझे…ऐसी सड़ी हुई मछली हो तुम जो पूरे तालाब को ही गन्दा करने पे उतारू है”…
“बचाव में ही समझदारी है…अभी भी संभल जाओ वर्ना पछताते देर ना लगेगी।फायदा इसी में है कि जब पानी के तेज़ बहाव म्रें उल्टी दिशा में नाव खे ना सको तो बहाव के साथ ही बह चलो”
मेरी राय में तो सारे के सारे ईमानदारों को बारी-बारी से पकड़ कर सज़ाए मौत का हुक्म सुनाते हुए सरेआम फाँसी पे लटका देना चाहिए और हाँ …उसका लाईव टैलीकास्ट करना हर चैनल वाले के लिए कानूनन मजबूरी हो।जो चैनल इस आदेश की अनदेखी करे…उसे देशद्रोह का ज़िम्मेवार मानते हुए उस पर तत्काल मुकदमा दर्ज होना चाहिए।

तो आओ दोस्तो!….हम अपने हितों की रक्षा के लिए एक हो जाएँ मिल के ये नारा लगाएँ…

ईमानदारी…
मुर्दाबाद…मुर्दाबाद…

शराफत….

नहीं चलेगी…नहीं चलेगी…

रिश्वतखोरी…

जिंदाबाद…जिंदाबाद

बेईमान!…
ज़िन्दाबाद…ज़िन्दाबाद…


“जय बोलो बेईमान की”…

“जय हिन्द”


***राजीव तनेजा***


Rajiv Taneja
(Delhi,India)
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