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भड़ास दिल की कागज़ पे उतार लेता हूँ मैँ- राजीव तनेजा

हंसी ठट्ठा
हंसी ठट्ठा
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क्या लिखूँ.. कैसे लिखूँ…
लिखना मुझे आता नहीं…

टीवी की झकझक..
रेडियो की बकबक..
मोबाईल में एम.एम.एस..
कुछ मुझे भाता नहीं

भडास दिल की…
कब शब्द बन उबल पडती है
टीस सी दिल में..
कब सुलग पडती है…
कुछ पता नहीं

सोने नहीं देती है ..
दिल के चौखट पे..
ज़मीर की ठक ठक
उथल-पुथल करते..
विचारों के जमघट
जब बेबस हो..तमाशाई हो..
देखता हूँ अन्याय हर कहीं

फेर के सच्चाई से मुँह..
कभी हँस भी लेता हूँ
ज़्यादा हुआ तो..
मूंद के आँखे…
ढाँप के चेहरा…
पलट भाग लेता हूँ कहीं

आफत गले में फँसी
जान पड़ती  मुझको
कुछ कर न पाने की बेबसी…
जब विवश कर देती  मुझको..

असमंजस के ढेर पे बैठा
मैँ ‘नीरो’ बन बाँसुरी बजाऊँ कैसे
क्या करूँ…कैसे करूँ…
कुछ सूझे न सुझाए मुझको…

बोल मैँ सकता नहीं
विरोध कर मैँ सकता नहीं
आज मेरी हर कमी…
बरबस सताए मुझको

उहापोह त्याग…कुछ सोच ..
लौट मैँ फिर
डर से भागते कदम थाम लेता हूँ …
उठा के कागज़-कलम…
भडास दिल की…
कागज़ पे उतार लेता हूँ

ये सोच..खुश हो
चन्द लम्हे. ..
खुशफहमी के भी कभी
जी लेता हूँ मैँ कि..
होंगे सभी जन आबाद
कोई तो करेगा आगाज़
आएगा इंकलाब यहीं..
हाँ यहीँ…हाँ यहीँ

सच..
लिखना मुझे आता नहीं…
फिर भी कुछ सोच..
भडास दिल की…
कागज़ पे उतार लेता हूँ मैँ”

***राजीव तनेजा***

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