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व्यथा- एक कहानी चोर की

हंसी ठट्ठा
हंसी ठट्ठा
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***राजीव तनेजा***

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हाँ!..मैँ चोर हूँ..एक कहानी चोर।अपने बिज़ी शैड्यूल के चलते इतना वक्त नहीं है मेरे पास कि मैँ आप जैसे वेल्लों के माफिक बैठ के रात-रात भर कहानियाँ या आर्टिकल लिखता फिरूँ।इसलिए अगर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए मैँने कॉपी-पेस्ट का सिम्पल और सीधा-सरल रास्ता अख्तियार  कर लिया तो कौन सा गुनाह किया? फॉर यूअर काईन्ड इंफार्मेशन!…मैँ सिर्फ उन्हीं लेखों और कहानियों को चुराता हूँ जो मुझे…मेरे दिल को अन्दर तक…भीतर तक छू जाती हैँ।वही कहानियाँ…वही लेख मेरा ध्यान अपनी तरफ खींच मुझे अट्रैक्ट करते हैँ जो मेरी भावनाओं के…मेरे दिल के बेहद करीब होते हैँ।यूँ समझ लो कि ऐसी कहानी या फिर ऐसे लेख को चुराते वक्त मुझे अर्जुन की तरह मछली की आँख के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देता जैसे… लेखक का नाम…उसके ब्लाग का नाम…उसकी साईट का पता वैगरा वगैरा…इसलिए बस झट से अपने मतलब का आर्टिकल कापी करता हूँ और उसे फट से अपने ब्लाग या फिर अपनी साईट पे पेस्ट कर डालता हूँ।

“क्या कहा?”…

“हमें किसी का डर नहीं है?”…

“हाँ सच!..सच कहा आपने हमें किसी का डर नहीं है।कौन सा हमें इस जुर्म में फाँसी लग जाएगी जो हम खाम्ख्वाह डरते रहें?.. भयभीत होते रहे?

अरे!…हमारे देश का कानून ही इतना लचर है कि यहाँ कत्ल से लेकर ब्लात्कार करने वाले सभी खुलेआम …सरेआम घूमते रहते हैँ और कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर पाता है।और…यहाँ तो हमने किया ही क्या है?…कौन सा हमने कोई बैंक लूटा है या फिर कोई डकैती डाली है?…

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हाँ!…हम जानते हैँ कि कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है या बिगाड़ पाएगा लेकिन फिर भी इतने बेवाकूफ नहीं हैँ हम कि अपने हर जुर्म..हर गुनाह के पीछे सुराग छोड़ते चले जाएँ।पहली बात तो हम अपने असली नाम..असली पते का प्रयोग ही नहीं करते हैँ।अब ऐसी हालत में आप अपनी जी भर कोशिश करने के बाद भी हमारा क्या उखाड़ लेंगे?दूसरे हम छद्म नाम…छद्म आई.डी इस्तेमाल करते हैँ।हाँ!…एक खतरा तो रहता ही है हमें इस सब में कहीं कोई हमारे ‘आई.पी अड्रैस’ के जरिए हम तक ना पहुँच जाए।इसलिए हमें मजबूरन एक नहीं बल्कि अलग-जगह से अलग-अलग कम्प्यूटरों के इस्तेमाल से अपना ब्लाग….अपनी साईट चलानी पड़ती है जो कि यकीनन काफी खर्चीला साबित होता है लेकिन नेम और फेम की इस गेम में हम इस तरह के छोटे-मोटे खर्चों की परवाह नहीं करते। कल को नाम हो जाएगा तो कमी तो अपने आप होने ही लगेगी| क्यों?…सही कहा ना मैंने?

आप क्या सोचते हैँ कि हमने झट से यूँ चुटकी बजाते हुए ये सब कह दिया तो ये आसान काम हो गया?अरे!…सुबह से लेकर शाम तक…आगे से लेकर पीछे तक और…ऊपर से लेकर नीचे तक बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैँ…बहुत सोचना पड़ता है कि इस सब में..कहीं हम खुद अपनी किसी छोटी या फिर बड़ी गलती के चलते फँस ना जाएँ।हमेशा दिल में धुक्कधुक्की सी बजती रहती है कि किसी को हमारी कारस्तानी…हमारी शरारत का पता तो नही चल जाएगा?और वैसे पता चल भी जाए तो बेशक चल जाए…  हमारे ठेंगे से …हमें कोई परवाह नहीं।हमारी तरफ से ये खुला चैलैंज ..ओपन ऑफर है हर किसी खास औ आम के लिए कि जिस किसी भी माई के लाल में दम हो और जो कोई हमारा कुछ बिगाड़ना चाहे वो बेशक!…बिना किसी शर्म के बेखटके बिगाड़ ले।

क्या कहा?…सब बकवास है ये?

अरे!..कब तक यूँ आँखें मूंद हमारे वजूद को नकारोगे रहोगे तुम?..है हिम्मत तो खत्म कर के दिखाओ हमें। हम में  से एक को मिटाओगे तो दस और रावण….सर उठा शेषनाग की भांति फन फैला..सीना तान सामने खड़े हो जाएँगे।किस-किस के फन को  कुचलोगे तुम?…किस-किस के नापाक दंश को झेलोगे तुम?… किस-किस को पकड़वाओगे तुम…किस-किस की पोल खोलोगे तुम?”

और हाँ!..अब जब बहस शुरू हो ही गई है तो लगे हाथ मैँ एक और बात साफ करता चलूँ कि ना मैँ कोई बिल्ली हूँ और ना ही चार पैरों पे चलने वाला कोई अन्य चौपाया।इसलिए बेहतर यही होगा कि आप ये मुझे बच्चों की तरह ‘कॉपी कैट’‘कॉपी कैट’ कह पुकारना छोड़ें और अपने मतलब से मतलब रखें।

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और अगर सही लगे तो मेरा कहना मान आप किसी भी तरह की गलतफहमी या मुगाल्ते को अपने दिल में ना पालें कि आपके रूठ जाने या आपके नाराज़ होने से  हम अपनी करनी छोड़…महात्मा बनते हुए सुधर जाएँगे? अगर फिर भी आप अपनी इस बेहूदी सोच के चलते ऐसा कुछ उल्टा-पुल्टा सोचने भी जा रहे हैँ तो अभी के अभी…यहीं के यहीं अपने बढते कदमों को थाम..इसी क्षण रुक जाएँ क्योंकि पहली बात तो ये कि खुली आँखो से ख्वाब नहीं देखे जाते और जाने-अनजाने..भूले-भटके कभी देख-दाख भी लिए जाते हैँ तो वो कभी हकीकत का जामा पहन असलियत नहीं बन पाते हैँ।वो कहते हैँ ना कि रस्सी जल जाती है लेकिन उसकी ऐंठन..उसके बल नहीं जाते हैँ|

क्या आपने कभी किसी कुत्ते की पूँछ को सीधे होते देखा है?

नहीं ना?

अगर मेरी बातों से…मेरे विचारों से आपको तनिक भी सच्चाई का आभास होता है तो आप मेरी बात मानें और ऐसे बेतुके…बेसिरपैर के विचारों को अपने दिल में जगह दे उन्हें अपना स्थाई घरौंदा ना बनाने दें।आप कह रहे हैँ कि हम आपका हक छीन अपनी झोली भरने की सोच रहे हैँ..तो आपकी सोच एकदम सही एवं सटीक दिशा की ओर अग्रसर होने में अपनी तरफ से कोई कसर …कोई कोशिश बाकी नहीं रख रही है और वैसे भी इसमें गलत ही क्या है?  कामयाबी हासिल करने का सबसे पहला और सबसे गूढ मंत्र भी तो शायद यही है ना कि…

  • तुम्हारे रास्ते में जो भी आए…जैसा भी आए उसे रौँदते हुए कुचल कर बेपरवाह आगे बढते चलो?”..

और यही गूढ महामंत्र हमें हमारे गुरू ने लुच्चापन सिखाते वक्त कहा था कि…

  • एक ना एक दिन मंज़िल तुम्हारे करीब होगी और तुम लिक्खाड़ों के बादशाह ही नहीं अपितु शहंशाह बनोगे…आमीन

और हाँ!..अब जब हमारी-आपकी दोस्ती हो ही गई है…तो इसमें अब लुकाव कैसा?…छुपाव कैसा?…इसलिए मैँ अब आपको खुला आमंत्रण देता हूँ कि आप जब चाहे…जितने बजे चाहें…दिन में या रात में कभी भी अपनी इच्छानुसार मेरे ब्लॉग पर आ…..सजदे में अदब से अपना सर झुका विनीत भाव से मत्था टेक सकते हैँ। भूलिएगा नहीं…आईएगा ज़रूर…मुझे आपका और आपकी विनम्र टिप्पणियों का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।

ब्लॉग पर आने के बाद

अब जैसा कि मेरे ब्लॉग पर आने के बाद ..और उसे ध्यानपूर्वक टटोलने-खंगालने  के बाद  आप सभी ने ये अच्छी तरह जान-बूझ और समझ लिया है कि साहित्य में मेरी कितनी रुचि है?…कितना इंटरैस्ट है? हाँ!…ये सही है कि आप ही की तरह मुझे भी अच्छे लगते हैँ ये किस्से…ये कहानियाँ और मैँ भी कुछ मौलिक ..कुछ क्रिएटिव…कुछ अलग सा लिख आप सभी के दिलों पे धाक जमाते हुए अपने काम की अनूठी छाप छोड़ना चाहता हूँ लेकिन क्या ये जायज़ होगा?.. कि काम-धन्धे से थके-मांदे घर लौटने के बाद हम अपने बीवी-बच्चों से प्यार भरी..शरारत भरीअटखेलियाँ करने के बजाय इस मुय्ये कम्प्यूटर में आँखे गड़ा अपने काले-काले  मृग नयनी डेल्लों(आँखों) को सुजाते फिरें?

आपका कहना सही है कि हमें हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए कुछ ना कुछ समय तो ज़रूर ही देना चाहिए।लेकिन दोस्त!…ऊपर  हाई-लाईट किए गए सभी गैर ज़रूरी कामों से निबटने के बाद जो रहा-सहा थोड़ा-बहुत टाईम बचता भी है तो मेरी लाख कोशिशों के बावजूद ये मुय्या  टी.वी का बच्चा मेरे ध्यान को अपने अलावा कहीं और…इधर-उधर पल भर के लिए भी भटकने नहीं देता।कई बार…कई मर्तबा इस इडियट बाक्स को समझा-बुझा कर भी देख लिया और रिकवैस्ट कर के भी थक लिया कि….

“कम्बख्त!…अब तो जाने दे और मुझे  कुछ अच्छा सा…सटीक सा लिखने-लिखाने दे।…समझा कर!…मान ले मेरी बात…वर्ना..लोग क्या कहेंगे?”

लेकिन कैसे बताऊँ आपको  अपने हाल-ए-दिल की व्यथा कि ये पागल का बच्चा ठीक उसी वक्त कभी ‘बिपाशा’ …तो कभी उस कलमुंही ‘कैटरीना’ के ठुमके लगवा मेरे एकाग्र होते हुए चित्त को भंग करने में कोई कसर…कोई कमी नहीं छोड़ता है।

अब जहाँ एक तरफ ‘विश्वामित्र’ सरीखा दिग्गज साधु भी ‘मेनका’ की मनमोहिनी अदाओं के  मोहपाश से ना बच सका और कामवासना के चलते अपनी तपस्या भंग कर पाप का भागीदार बन बैठा।वहीं दूसरी तरफ मैँ तो खुद एक मामुली सा..तुच्छ सा…अदना सा प्राणी हूँ।मेरी क्या बिसात?…कि मैँ इन तमाम कलयुगी अप्सराओं के रूप सौन्दर्य को अनदेखा कर उनके सभी जायज़-नाजायज़ प्रयासों को असफल बना…धत्ता बता चुपचाप आगे बढ जाऊँ?

अब ऐसे में सब कुछ जाने-समझने के बाद आपका …हमारे गिरेबान को पकड़ हमें कोसने से बेहतर यही रहेगा कि आप हमारे समाज से इस ‘टी.वी’ रूपी विष बेल को ही जड़ उखाड़ फैंके।ससुरी..बहुत दिमाग खराब करत रही|

क्या हक बनता है किसी चैनल वाले का कि वो ऐसे-ऐसे गर्मागरम…सड़ते-बलते म्यूज़िक विडियो परोस हमारा धर्म…हमारा ईमान बिगाड़ें?

अब तक आप मेरी दशा-मनोदशा समझ ही गए होंगे।अब ऐसे कठिन हालात में हम लाख चाहने और लाख कोशिशें करने के बावजूद  कुछ मौलिक …कुछ ओरिजिनल लिखने के लिए वक्त नहीं निकाल पाते तो इसमें हमारा  क्या कसूर? और हाँ!…आपका ये कहना सरासर झूठ और फरेब के अलावा कुछ नहीं है कि हम में अच्छा लिखने की इच्छा शक्ति नहीं है या फिर हम कुछ रुचिकर लिखना  ही नहीं चाहते हैँ। वो कहते हैँ ना कि सावन के अँधे को हर तरफ हरा ही हरा नज़र आता है।इसी तरह आप सभी महान गुणी जनों को हम में सिर्फ कमियाँ ही कमियाँ दिखाई देती हैँ।आपके इन आरोपों में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है बल्कि सीधी…सरल और सच्ची बात तो ये है कि हम हक-हलाल की खाने के बजाए आराम से घर बैठे-बैठे हराम की कमाई डकारने में ज़्यादा विश्वास रखते हैँ।

आप कहते हैँ कि हम समाज के नाम पर कलंक हैँ….धब्बा हैँ लेकिन यहाँ मैँ आपकी बात से कतई सहमत नहीं ।जितना नुकसान हम आपकी कहानियों को…आपके लेखो को चुरा कर कर रहे हैँ…उससे कहीं ज़्यादा नुकसान तो आप इन कहानियों  और लेखों  को लिख कर कर रहे हैँ इस देश का…इस समाज का|

क्यों झटका लगा ना?…खा गए ना चक्कर?…

जानता हूँ…जानता हूँ अच्छी तरह जानता हूँ कि सच अक्सर कड़वा होता है और आप मेरी लाख कोशिशों के बाद भी इस पर विश्वास नहीं करेंगे लेकिन क्या सिर्फ आप भर के विश्वास ना करने से सच…सच नहीं रहेगा?…झूठ हो जाएगा?…
अगर आप में सच सुनने की हिम्मत नहीं है तो बेशक अपने कान बन्द कर लें और अगर सच देखना नहीं चाहते हैँ तो बिना किसी भी प्रकार की कोई देरी किए  तुरंत प्रभाव से अपनी आँखे भी बन्द कर लें।…

उफ्फ!…कितने ढीठ हैं आप कि अभी भी मानने को तैयार नहीं?…क्या आपको इल्म भी है कि आपकी इस दिन रात की बेकार की  टकाटक से….

  • कितना साऊँड पाल्यूशन होता है?..
  • कितने कीबोर्ड और माऊस टूटते हैँ?…
  • कितनों की नींदे खराब होती हैँ? और…
  • असमय जाग जाने के कारण कितनों के सपने धराशायी हो…वास्तविकता के धरातल पे पलक झपकते ही टूटते हैँ?”….

आपके इस कहानियाँ और लेखों को लिखने…लिखते चले जाने के ज़ुनून की कारण  ही आज भारत  जैसे स्वाभिमानी देश को  अमेरिका जैसे घमंडी और नकचढे देश का पिछलग्गू बन उसके आगे अपनी झोली फैलानी पड़ रही है।अफसोस!…क्या आपके दिल में स्वाभिमान नाम की कोई चीज़ नहीं है?…या कोई यूँ ही कोई आपके देश की अखंडता के साथ…उसकी अस्मिता के साथ खिलवाड़ करता फिरे…आपको कोई फर्क नहीं पड़ता?

क्या कहा?…

विश्वास नहीं हो रहा आपको मेरी बात का?…

बड़े अचरज की बात है कि आप जैसे इतने पढे-लिखे और ज़हीन इनसान भी इतनी छोटी और कमज़ोर टाईप की समझदानी लिए बैठे हैँ…कभी सोचा ना ।इसलिए…हाँ…इसीलिए मैँ हर किसी नए-पुराने लेखक से ये कहता फिरता हूँ कि…

“यूँ रात-रात भर जाग-जाग कर कीबोर्ड के साथ ये बेसिरपैर की उठापटक अच्छी नहीं”

ओह!…रह गए ना फिसड्डी के फिसड्डी..पल्ले नहीं पडी ना बात?

खैर छोड़ो!…मैँ ही समझा देता हूँ आप जैसे महान लिक्खाड़ों को कि ..दूधिया ट्यूब लाईटों और बल्बों की चटखदार रौशनी में आप जैसों की लेखनी के रात-रात भर चलने से आज हमारा देश गंभीर ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है।खेतों  को…फैक्ट्रियों को प्रचुर मात्रा में बिजली नहीं मिल रही है…पानी नहीं मिल रहा है…

“क्या कहा?”…

“बिजली की बात तो समझ में आ गई लेकिन पानी की बात…

?…?…?…?…

सर के ऊपर से निकल गई?

सदके जाऊँ तुम्हारे इस मोटे दिमाग के

हद हो गई है यार अब तो..आप लोगों के..जी हाँ!…आप लोगों के ही दिन-रात लिखते..लिखते रहने से देश की ऊर्जा याने के बिजली के काफी बड़े हिस्से का अपव्यय हो रहा है …क्षय हो रहा है और आप हैं कि आपको कोई खबर ही नहीं?…कोई इल्म ही नहीं? आप ही के इन अनैतिक कृत्यों की वजह से आज पूरे देश को शर्मसार होना पड़ रहा है| आप ही के घृणित एवं नाजायज़ कारनामों की वजह से आज कृषि-प्रधान देश होते हुए भी हम अन्न के मामले में  आत्मनिर्भर होने के बजाए दाने-दाने को मोहताज हुए बैठे हैँ। अरे भाई!…जब खेतों को परचुर मात्र में बिजली नहीं मिलेगी…तो पानी कहाँ से मिलेगा? और पानी नहीं मिलेगा तो खेत में उगाएंगे क्या?…

“कद्दू?”…

बिजली की कमी के चलते सभी तरह के उत्पादन कार्य…विकास कार्य ठप्प हुए पड़े हैँ।कल-कारखानों को एक के बाद एक ताले लगते जा रहे हैँ।जिसकी वजह से हमारे देश में बेरोज़गारी जैसी अत्याधिक गंभीर समस्या भी सिर उठाए खड़ी है ।आज ऊर्जा की कमी के चलते हमें ना चाहते हुए भी मजबूरन रशिया का साथ छोड़ अमेरिका का हाथ थाम उसके साथ परमाणु समझौता करना पड़ रहा है।

अब आप कहने को ये भी कह सकते हैँ कि…”ये समझौता तो हमारे देश के लिए हितकारी है…फायदेमन्द है”…

चलो!…मानी आपकी बात कि इस सौदे के बाद से हमें यूरेनियम की प्रयाप्त सप्लाई होगी जिससे देश में बिजली की कोई कमी नहीं रहेगी लेकिन ये भी तो देखें आप कि इस समझौते के बाद से हमारे हर काम पर निगरानी रखने का अधिकार मिल जएगा चन्द मगरूर…मगर अकड़बाज देशों को।

“अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है …समय रहते चेत जाओ और ओरिजिनल और मौलिक लिखने के बजाए हमारी तरह कॉपी-पेस्ट की सरल और सुलभ तकनीक को अपनाते हुए देश को संकट और मुसीबत से बचा आत्मनिर्भर एवं सबल बनाओ।

तो आओ दोस्तो!…हम सब इस लिखने-लिखाने की बेकार की माथापच्ची को छोड़ …दूर कहीं शांति से पहाड़ियों की रमणीय गुफाओं और कंदराओं में ये गीत गाते हुए कि…

“आ जा गुफाओं में आ…..आ जा गुफाओं में आ”….एकांत जीवन बिताएँ और मिल के ये शपथ लें कि… “आज से..अब से  कोई मौलिक कहानी नहीं …कोई ओरिजिनल लेख नहीं”..

आखिर!..देश का…देश की अस्मिता का…अखंडता का सवाल जो ठहरा।

हिन्द”….

“इंकलाब ज़िन्दाबाद”…

ज़िन्दाबाद…ज़िन्दाबाद“…

“भारत माता की जय”

***राजीव तनेजा***

Rajiv Taneja

Delhi(India)

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