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हैलो!..इस इट 9136159706?”..
“यैस!…मे आई नो..हूज़ ऑन दा लाईन?”…
“आप ‘लव गुरू’ बोल रहे हैँ?”…
“यैस!..’लव गुरू’ स्पीकिंग…आप कौन?”…
“मैँ …गुड्डू…सोनीपत से”…
“हाँ जी!..गुड्डू जी….कहिए….मैँ आपकी क्या खिदमत कर सकता हूँ?”…
“मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है”…
“गुड!…ये तो बड़ी अच्छी बात है”…
“जी!…लेकिन पापा कहते हैँ कि…
“अभी तो तेरे खेलने-कूदने के दिन हैँ…इसलिए अभी से इन चक्करों में पड़ना ठीक नहीं?”…
“जी”…
“आपकी उम्र कितनी है?”…
“जी!..उम्र तो कुछ खास नहीं है लेकिन…
“वैसे आप बालिग तो हैँ ना?”…
“जी!…बालिग तो मैँ इतना हूँ….इतना हूँ कि…
“बस-बस!…मैँ समझ गया”….
“तो फिर आप ही बताएँ कि मैँ क्या करूँ?”…
“अगर आप शारिरिक…मानसिक और दिमागी तौर पर बालिग हैँ तो कोई भी ‘माई का लाल’ आपको प्यार करने से नहीं रोक सकता”…
“लेकिन उनका नाम तो गोपाल है”…
“किनका?”….
“मेरे पापा का”…
“ओह!…
“वो कहते हैँ कि…
“अगर उन्हीं का कहा मानना है तो फिर मुझे क्यों फोन किया है?…उन्हीं की बात मानो”मेरा कुछ-कुछ खुन्दक भरा स्वर …
“लेकिन….
“तुम्हारा अच्छा-भला…सब सोच के ही तो उन्होंने ऐसा कहा होगा”…
“जी!..कहा तो है लेकिन…
“पिता हैँ तुम्हारे…गलत राय थोड़े ही देंगे…अपना…अच्छे बच्चों की तरह उन्हीं की बात मानो”….
“जी!…मानने को तो मैँ उनकी सारी बातें मान लूँ लेकिन कोई ढंग की बात करें…तब तो”…
“क्यों?…क्या हुआ?”…
“खुद तो शर्मा आँटी को रोज़ …दे फोन पे फोन कर के उनका माथा खराब किए रहते हैँ और मुझे कहते रहते हैँ कि ये ना करो…वो ना करो”…
“ओह!…कुछ सोच के ही ऐसा कहते होंगे”….
“हुँह!…सोचते होंगे..अगर सोचते होते तो आज मैँ छड़ा-छाँट नहीं बल्कि दो-चार हट्टे-कट्टे..तंदुरस्त बच्चों का बाप होता”…
“ओह!..तो फिर तुम एक काम क्यों नहीं करते?”…
“क्या?”…
“एक दिन ले जा के सीधा…डाईरैक्ट उसे अपने पिताजी के सामने पेश कर दो”…
“दिमाग खराब नहीं है मेरा”….
“क्यों?…क्या हुआ?”…
“इस शर्मा आँटी को भी तो मैँने ही मिलवाया था उनसे”…
“तो?”…
“कम्बख्त ने मेरा नम्बर काट…खुद ही उन्हें लाईन मारना शुरू कर दिया”…
“जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को दोष देने से फायदा?”…
“क्या मतलब?”…
“इस सब के लिए आप अपने पिताजी को क्यों कोस रहे हैँ?…इसमें उनकी गलती ही क्या है?…उन्होंने पहल थोड़े ही की थी?”…
“हाँ-हाँ!…कोई गलती नहीं है लेकिन इतनी समझ तो होनी चाहिए ना हमारे बुज़ुर्गों में कि बच्चों के माल पे हाथ साफ ना करें”…
“ओह!…तो फिर तुम भाग के शादी क्यूँ नहीं कर लेते उसके साथ?”…
“शर्मा आँटी के साथ?”…
“नहीं!..वो तो तुम्हारे पिताजी के साथ ऐंगेजड है ना?”…
“ऐंगेज्ड तो यार!…वो पता नहीं कितनों के साथ है?…लेकिन टू बी फ्रैंक…मेरे पिताजी का खास ख्याल रखती है”…
“ओह!…
“वैसे आप मुझे किसके साथ शादी करने के लिए कह रहे थे?”…
“जिससे तुम प्यार करते हो…उसी के साथ…और किसके साथ?”…
“शादी तो उससे मैँ अभी कर लूँ…एक मिनट में कर लूँ लेकिन…
“पापा मानें तब ना?”….
“नहीं!…’पम्मी’ माने..तब ना”…
“अब ये ‘पम्मी’ कौन?”…
“मेरी मम्मी”…
“ओह!…उन्हें क्या प्राबल्म है?”…
“यही कि लड़की उनकी जात-बिरादरी की नहीं है”…
“ओह!…
“उन्हें तो मैँ अपने प्यार का…अपने होने वाले नौनिहालों का वास्ता देकर किसी तरह मना भी लूँ लेकिन…
“लेकिन क्या?”…
“पापा भी मानें …तब ना”…
“अरे!..पापा को भेजो तेल लेने और जैसा मैँने कहा…वैसा अमल में लाओ …फिर देखो…तुम्हारे जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी…ये ‘लव गुरू’ का वादा है तुमसे”….
“लेकिन पापा…
“ओफ्फो!…की पापा-पापा ला रक्ख्या ए?…वड़न दे ओहणाँ नूँ ढट्ठे खू विच्च….तूँ अपणा मौज लै”…
(पापा जाए भाड़ में…तुम अपना मौज लो”…
“क्क्या मतलब?”…
“दिमाग से नहीं..दिल से सोचिए जनाब…दिल से”….
“लेकिन…
“तुम ये लेकिन-वेकिन की चिंता छोड़ो और एक काम करो”…
“क्या?”…
“उन्हें सीधा मेरे पास भेज दो”….
“आपके पास?…आप उनका क्या करेंगे?”गुड्डू का असमंजस भरा शंकित सा स्वर
“चुम्मी लूँगा…तुमसे मतलब?”…
“ओह!…नो…आप भी?”…
“क्क्या?…क्या मतलब?…मतलब क्या है तुम्हारा?”…
“कहीं आप भी मेरे फिरंगी दोस्त की तरह…व्वो तो नहीं?”…गुड्डू अविश्वास भरे स्वर में बोला
“पागल हो गए हो क्या?…मेरे जैसे डीसैंट और आज़ाद ख्याल वाले बन्दे के बारे में तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया?”… ….
“अभी आप ही ने तो कहा कि …
“क्या?”…
“यही कि अपने पापा को मेरे पास भेजो?”…
“तो?”…
“मैँने सोचा कि…
“वाह!…वाह-वाह…बहुत खूब सोचा तुमने…सदके जाऊँ तुम्हारी इस दकियानूसी सोच के”…
?…?…?…?…?…
“अरे बेवाकूफ!…ऐसा तो मैँने इसलिए कहा था कि मैँ उन्हें यूँ..यूँ चुटकियों में समझा सकूँ”
“ओह!…लेकिन मेरे पापा बड़े ज़िद्दी हैँ…ऐसे चुटकी बजाने से तो बिलकुल नहीं मानेंगे”गुड्डू चुटकी बजा कुछ सोचता हुआ बोला…
“बाप का माल समझ रखा है क्या?…ऐसे-कैसे नहीं मानेंगे?”…
“आप उन्हें जानते नहीं हैँ”…
“बेटा जी!..जानते तो ठीक से तुम भी मुझे नहीं हो…इसलिए ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो”…
“उन्हें समझाना बड़ी ही टेढी खीर है”..
“अगर वो टेढी खीर हैँ तो मैँ भी कम घाघ नहीं हूँ”…
“क्या मतलब?”…
“ये ऑल इंडिया फेमस ‘लव गुरू’ तो अच्छे-अच्छे ब्रह्मचारियों को ठोक-पीट के पक्का ग्रहस्थ बना चुका है…तुम्हारा बाप किस खेत की मूली है?”…
“बझघेड़ा की”….
“क्या मतलब?”…
“वही तो हमारा गाँव है”…
“तुम…तुम बझघेड़ा के हैँ?”…
“जी…खालिस बझघेड़ा का बाशिन्दा हूँ”…
“फिर तो तुम्हारा काम करना ही पड़ेगा…बझघेड़ा में मेरा चचिया ससुर रहता है”…
“चचिया ससुर?”….
“जी!…चचिया ससुर”…
“कहीं आप रामदित्ता बागला के बेटे तो नहीं?”..
“जी!…जी हाँ…मैँ उन्हीं का बेटा हूँ”…
“तो फिर आप दिल्ली में क्या कर रहे हैँ?….आपको तो पानीपत में होना चाहिए…वहीं तो रहते हैँ ना आप?”…
“रहता हूँ ..नहीं…रहता था”…
“ओह!…
“पिछले एक साल से मैँ दिल्ली में ही शिफ्ट हो गया हूँ”….
“कोई खास वजह?”…
“कुछ नहीं!…बस ऐसे ही…पानीपत की ‘आब औ हवा’ रास नहीं आ रही थी”…
“ओह!…इण्डस्ट्रीयल एसटेट होने की वजह से वहाँ भी पाल्यूशन काफी बढ गया है ना?”…
“जी”…
“लेकिन पाल्यूशन तो दिल्ली में भी कम नहीं है…पानीपत से तो कुछ क्या?…काफी ज़्यादा होगा”…
“जी!…लेकिन दिल्ली जैसे बड़े शहर में रहने की जो साहूलियतें हैँ वैसी पानीपत जैसी छोटी टाउनशिप में कहाँ?”…
“जी!…ये तो है”…
“जी!…
“तो फिर काम-धन्धा वगैरा?”…
“वो भी अब यहीं…दिल्ली में ही सैट कर लिया है”….
“लेकिन पानीपत में तो आपका काफी पुराना…जमा जमाया काम था ना?”..
“जी!…पूरे पैंतीस साल पुराना ठिय्या था”…
“उसे बन्द क्यों कर दिया?”…
“बस!…ऐसे ही”…
“ऐसे ही?…कोई तो वजह रही होगी”…
“गुड्डू जी!…जान है तो जहान है..जान से बढकर कुछ नहीं होता”…
“जी!…ये बात तो सच है लेकिन ऐसा क्या हुआ रातों-रात कि आपने शहर ही छोड़ दिया?”…
“रातों-रात नहीं…पिछले तीन-चार सालों से कुछ गुंडे-बदमाश टाईप के लौण्डे-लपाड़े बेकार में हफ्ता वसूली के नाम पे रोज़ाना तंग कर आ जाते थे दुकान पर”…
“उन्हीं के डर से आपने पानीपत छोड़ दिया?”…
“जी”…
“आप एक बार मुझे फोन कर के तो देखते”….
“उससे क्या होता?”…
“क्या होता?…आपने पानीपत के खास बदमाश ‘शंटी’ -दा शार्प शूटर का नाम तो सुना ही होगा?”…
“जी!..कई बार…उसी ने तो…
“उसके साथ मेरा बरसों पुराना याराना है”….
“क्क्या?….श्शंटी?…शंटी के साथ?”…
“जी हाँ!…मेरा खास…लंगोटिया यार है”…
“ओह!…उसी के चेले-चपाटे तो मुझे परेशान करते थे”…
“आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?..स्साले!…को वहीं आपके आगे नाक ना रगड़वा देता तो मेरा भी नाम गुड्डू नहीं”….
“आप एक बार उसके आगे मेरा नाम ले देते तो पंगा लेना तो दूर की बात है…वो आपसे बेफाल्तू की चूँ चपड़ तक करने की जुर्रत नहीं करता”…
“अब तो यार मैँ दिल्ली सैटल हो गया हूँ….इसलिए अब कोई दिक्कत नहीं”…
“दिल्ली का भी कोई काम हो तो बेहिचक कहिएगा…उसके दिल्ली में भी कई लिंक हैँ”…
“दिल्ली में तो मेरे भी कई लिंक हैँ लेकिन ऐसे झमेलों से जितना दूर रहा जाए…उतना अच्छा है”….
“जी!…ये बात तो है…इनकी दोस्ती भी बुरी है और दुश्मनी भी”…
“जी!…ये बातें तो खैर चलती ही रहेंगी..तुम ये बताओ कि कब भेज रहे हो?”…
“किसे?”…
“अपने पिताजी को”…
“किसलिए?”..
“तुम्हारी शादी के लिए उन्हें मनाना है कि नहीं?”…
“लेकिन कैसे?…कैसे आप उन्हें मनाएँगे?…वो तो बड़े ही ज़िद्दी”…
“कैसे क्या?…अभी कुछ देर पहले कहा ना कि…ठोक-पीट के”….
?…?…?…?…
“एक बार की बात सुनो”…
“जी”…
“एक सेठ दुनीचन्द जी थे बिजनौर वाले…उनका मंझला बेटा अड़ के खड़ा हो गया कि आजीवन कुँवारा रहूँगा…शादी नहीं करूँगा”…
“ओह!…
“उसकी शादी हो…तब तो निचले का नम्बर आए”…
“जी!…
“वो बेचारा…प्यार में पागल…दौड़ा-दौड़ा मेरे पास आया कि….
“इतनी दूर…’बिजनौर’ से दौड़ा-दौड़ा?…लेकिन कैसे?”….
“नहीं रे…ऐसा भी भला कहीं सचमुच में होता है कि कोई बावला हांफ-हांफ के मैराथन दौड़ लगाता हुआ सीधा बिजनौर से दिल्ली तक चला आए ?”…
“तो फिर?”…
“ऐसा कहा जाता है”…
“ओह!…फिर क्या हुआ?”…
“होना क्या था?…उसका फोन आया और उसने अपनी समस्या बताई”…
“ओ.के…फिर क्या हुआ?”…
“पट्ठे को ऐसी घुट्टी पिलाई कि आज दो हट्टे-कट्टे तन्दुरस्त बच्चों का इकलौता बाप है…..
“लेकिन फोन पे तो आपने दुनीचन्द जी के सबसे छोटे बेटे को घुट्टी पिलाई थी ना?”…
“हाँ”…
“एक मिनट!…लैट मी कैल्कूलेट…आपने घुट्टी…छोटे वाले भाई को पिलाई?”गुड्डू अपने दिमाग पे ज़ोर डाल हिसाब लगाता हुआ बोला…
“जी”…
“और बच्चे मँझले के यहाँ पैदा हुए….लेकिन कैसे?”..
“ये तुमसे किस गधे ने कह दिया कि बच्चे मँझले भाई के यहाँ पैदा हुए थे?…वो तो…
“अभी आपने ही तो…
“मैँ कब कहा कि मँझले ने जोश में होश गंवा के ज़ोर मारा था?”…
“तो फिर आप किसकी बात कर रहे थे?”…
“सबसे छोटे भाई की…उसे ही तो मैँने घुट्टी पिलाई थी”…
“लेकिन शादी तो मँझले की करवानी थी ना?”…
“करवानी तो थी यार!…लेकिन उसने करी कहाँ?…पट्ठा लाख समझाने से भी माना नहीं”मैँ मायूस स्वर में बोला…
“ओह!…फिर क्या हुआ?”…
“होना क्या था?…जब देखा कि मँझला तो किसी भी कीमत पे मानने को तैयार नहीं तो छुटके को ही राय दे डाली कि इसकी चिंता छोड़ा तू खुद लावां-फेरे ले ले”…
“गुड!…ये आपने अच्छा किया”…
“जी”…
“चलो!…घुट्टी पिलाने का कुछ तो असर हुआ”…
“जी!….तो फिर कब भेज रहे हो?”..
“किसे?”…
“अपने बाप को”..
“किसलिए?”…
“घुट्टी नहीं पिलवानी?”….
“उन्हें किसलिए?…शादी तो मैँने करनी है”….
“अरे!…बेवाकूफ..अभी कुछ देर पहले तो तुम खुद ही कह रहे थे कि तुम्हारा बाप मानता नहीं है”…
“तो?”…
“उन्हें समझाऊँगा नहीं?”…
“आप उन्हें क्या समझाएँगे?”….
“ट्रेड सीक्रेट”….
“फिर भी…पता तो चले”…
“प्यार करना सिखाऊँगा”…
“लेकिन कैसे?”…
“कैसे?…क्या…जैसे सिखाया जाता है…वैसे”…
“लेकिन उनकी उम्र तो….
“अजी!…उम्र से क्या होता है?…गट्स होने चाहिए आप में…अगर आप में हुनर है…काबिलियत है..तो कोई भी मंज़िल..कैसी भी मंज़िल?…आपकी पहुच से…आपकी पकड़ से दूर नहीं होती”…
“आपकी बात बिलकुल सही है लेकिन….
“अब मुझ ही को लो…किसी भी ऐंगल से चालीस से कम का नहीं दिखता हूँ लेकिन लौंडिया छब्बीस की फँसा रखी है…हे…हे…हे……
“ओह!…लेकिन कैसे?”…
“कैसे क्या?…अभी कहा ना कि हुनर होना चाहिए”….
“लेकिन कैसा हुनर?…यही तो मैँ भी पूछ रहा हूँ”…
“अरे वाह!…ऐसे-कैसे बता दूँ?…पैसे लगते हैँ इसके”…
“पैसे तो मैँ दस…बीस…पचास…सौ…जितने कहो…उतने देने को तैयार हूँ लेकिन बस नोट मत माँग लेना…प्लीज़”…
“हें…हें…हें…वैरी फन्नी…तुम्हारे भी सैंस ऑफ ह्यूमर का जवाब नहीं”….
“थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट”….
“वैसे मैँ पैसों की नहीं बल्कि हज़ार रुपए के कड़कड़ाते हुए नोट की बात कर रहा था”मैँ पुन: मुद्दे पर आता हुआ बोला
“पूरे हज़ार रुपए लेता हूँ एक बार मशवरा देने के”…
“ओह!…लेकिन हज़ार रुपए तो फिलहाल मेरे पास है नहीं”गुड्डू अपना पर्स खंगालता हुआ बोला….
“तो क्या ऐसे ही कँगले चले हो प्यार करने?”…
“नहीं!…पैसे मेरे पास हमेशा हुआ करते थे लेकिन जब से उस कम्बख्त मारी से प्यार हुआ है….
“पैसे टिकते ही नहीं तुम्हारी जेब में?”…
“जी”…
“इसका मतलब ये है बरखुरदार कि तुम किसी नेक एवं शरीफज़ादी के नहीं बल्कि किसी निहायत ही चतुर…चालाक और तेज़तर्रार लड़की के प्यार में पागल हो रहे हो”…
“क्या आपकी डिक्शनरी में ‘काईयां’ वर्ड नहीं है?”…
“है तो सही लेकिन….
“लेकिन?”…
” महिलाओं के लिए उसका इस्तेमाल करना ठीक नहीं”…
“ओह!…
“उसका फोन तुम रिचार्ज करवाते हो?”…
“जी!…कभी-कभी”….
“कभी-कभी या फिर हमेशा?”…
“हमेशा”….
“और वो तुम्हारे बजाय किसी और से बातें करती है?”….
“जी!…कई बार मुझे भी ऐसा ही शक हुआ लेकिन…
“शक की तो कोई गुंजाईश ही नहीं है…मैँ 100 % श्योर हूँ कि वो ऐसा ही करती होगी”…
“ऐसा आप कैसे कह सकते हैँ?”…
“तजुर्बा…पूरे 19 साल का तजुर्बा है मुझे”…
“मोबाईल रिचार्ज करवाने का?”…
“नहीं!…उस समय मोबाईल होते ही कहाँ थे”…
“तो फिर?”…
“कईयों को मैँने आईसक्रीम खिलवाने से लेकर फिल्में तक दिखाई…कुछ को लेटस्ट डिज़ाईन के मँहगे वाले सूट तक सिलवा कर दिए”….
“इसमें कौन सी बड़ी बात है?…ये सब तो मैँ भी कर चुका हूँ लेकिन…
“कुछ एक को तो मैँने अण्डर गारमैंट्स से ले कर सैनेट्री नैपकिन तक दिलवाए लेकिन नतीजा…वही सिफर का सिफर”…
“क्या मतलब?”…
“आज की तारीख में दूसरों के बच्चों की माएँ बनी मज़े से ऐश कर रही हैँ”…
“ओह!…नो”…
“इसलिए मेरी बात मानो और उस लड़की से जितनी जल्दी हो सके…दूर हो जाओ”…
“लेकिन कैसे?…वो है ही इतनी क्यूट कि…
“बहारे और भी आएँगी तुम्हारे चमन में …इसको छोड़… कोई और नई वाली ढूँढ लो…जो इससे भी ज़्यादा क्यूट और स्मार्ट हो”….
“कहना बहुत आसान है लेकिन जिसके दिल पर बीत रही हो…उससे पूछ के देखिए जनाब…उस से पूछ के देखिए…वो कहते हैँ ना कि…दिल आया गधी पे तो परी क्या चीज़ है?”….
“एक पुराने शायर भी तो कह गए हैँ कि…तू नहीं…और सही…और नहीं और सही”…
“अरे!…सालों तक…कई औरों के साथ मगजमारी और टाईम खोटी करने के बाद ही तो मैँने इसे फाईनल करा था और ये भी….
“ये भी?”…
“मेरे बजाय किसी और से प्यार करने लगी है”….
“क्या?…तुम तो कह रहे थे कि तुम इससे शादी करना चाहते हो”….
“मैँने कब इनकार किया?…वो कम्बख्तमारी पहले राज़ी तो हो”…
“ओह!…तो इसका मतलब इतनी देर से तुम ऐसे ही बेकार में…वेल्ले मेरा टाईम खोटी कर रहे थे?”…
“जी…म्मैँ तो…मैँ तो”…
“स्साले!…हकले….ये…मैँ तो…मैँ तो कर के क्या मिमिया रहा है?…पहले नहीं बता सकता था कि लड़की पट नहीं रही है”…
“ज्ज्जी!…ब्ब्बताना तो चाहता था मगर……
“मगर क्या?…मैँ ही तुझे घनचक्कर मिला था”…
“खबरदार!…जो आज के बाद कभी मुझे भी फोन किया तो”…
“ओ.के…बॉय”…
“बॉय?…बॉय से क्या मतलब?”…
“मैँ जा रहा हूँ”….
“कहाँ?”…
“तुमसे मतलब?…
“ऐसे-कैसे बिना केस को सुलझवाए तुम जा सकते हो?”…
“हाँ-हाँ…मैँ ही बुरा हूँ…मैँ ही सबसे बुरा हूँ…इस दुनिया में मेरा कोई काम नहीं…..मुझे जीने का कोई हक नहीं…मैँ जा रहा हूँ…हमेशा के लिए जा रहा हूँ…अलविदा…अलविदा ऐ दोस्तो”…
“रुको…रुको…प्लीज़…पागल मत बनो….ऐसे बिना बताए तुम कैसे जा सकते हो?”…
“रुको!…मैँ तुम्हारी समस्या का हल करने की कोशिश करता हूँ”…
“लेकिन कैसे?…वो तो….
“एक बात बताओ…तुम उसके साथ कहीं बाहर घूमने वगैरा भी गए हो?”…
“जी!..कई बार उसने कहा कि ‘स्पलैश’ वॉटर पार्क जाएँगे घूमने लेकिन…
“लेकिन ऐन मौके पे वो तुम्हें डिच कर के किसी दूसरे के साथ घूमने चली गई?”…
“जी”…
“मेरी बात मानो…वो तुमसे कोई प्यार-व्यार नहीं करती…तुम्हारा इस्तेमाल कर रही है वो…ऐसी घटिया …नीच और बदज़ात लड़की तुम्हारे किसी काम की नहीं है…छोड़ दो उसे”…
“छोड़ दूँ?…मेरा तो मन करता है कि उस कमीने का मुँह तोड़ दूँ”…
“नहीं!…हाथ उठाना ठीक नहीं है”…
“मार-मार के उसका इतना बुरा हाल कर दूँ ….इतना बुरा हाल कर दूँ कि अगले सात जन्मों तक वो उससे बात करने की जुर्रत ना करे”….
“नहीं!…बिलकुल नहीं….दूसरों द्वारा की गई मूर्खता के चलते हम भी अपने होश गंवा बैठें…तो समझदार और बेवाकूफ में फर्क ही क्या रह जाएगा?….और फिर ऐसा करना हम जैसे प्रबुद्ध एवं गुणी विचारों से संपन्न इनसानों के लिए ठीक भी नहीं होगा”…
“ये ठीक नहीं होगा…वो ठीक नहीं होगा…तो फिर आप ही बताईए कि क्या ठीक होगा मेरे लिए?…कैसे मैँ निबटूं उस हराम…..
“शांत!…गदाधारी भीम…शांत…ऐसे कठोर एवं घ्रिणित शब्दों का तुम्हारी मखमली ज़बान से उच्चरित होना अच्छा नहीं लगता…विनम्रता…शर्म और लाज तो हम पुरुषों का गहना है… कोई और तरकीब सोचो उस नामुराद से निबटने की”…
“लातों के भूत बातों से कभी माने हैँ?…जो अब मानेंगे”…
“नहीं…यहाँ मैँ तुम्हारी इस बात से सहमत नहीं हूँ…नारी जाति मेरे लिए सर्वदा ही पूजनीय रही है…उसके साथ ऐसी हिंसा को कदापि बर्दाश्त नहीं कर सकता”….
“अरे!…उसकी बात नहीं कर रहा हूँ मैँ”…
“तो फिर तुम किसका मुँह तोड़ने की बात कर रहे थे?”…
“उसी कमीने का जिसने मेरी गर्ल फ्रैंड को बहकाया है…अपने जाल में फँसाया है”…
“तो फिर खड़े-खड़े सोच क्या रहे हो?…तुम्हारे लिंक तो बड़ी दूर-दूर तक फैले हुए हैँ…ठिकाने क्यों नहीं लगवा देते उस नामुराद को?”…
“जी!…लगवा तो दूँ लेकिन…
“लेकिन?”…
“लोग क्या कहेंगे कि एक निहत्थे पर वार कर उसे मरवा डाला?”…
“युद्ध और प्यार में सब कुछ जायज़ है मित्र…तुम ‘साम’…’दाम’…’दण्ड’ या ‘भेद’…किसी को भी अपना कर अपने शत्रु को चित्त कर सकते हो…तुम्हें पूरी छूट है”..
“सब कुछ कर के देख लिया लेकिन वो कमीना है ही इतना शातिर कि….
“हर बार तुम्हारे दाव से बच कर निकल जाता है?”…
“जी”…
“एक अदना सा मोहरा भी तुमसे नहीं पीटा जाता तो तुम क्या खाक प्यार करोगे?”…
“अब यार…कई बार कोशिश कर तो ली लेकिन वो कमीना हर बार बच के निकल जाता है…मैँ क्या करूँ?”…
“अगर तुम्हारे बस का नहीं है तो यूँ ही हाथ पे हाथ धरे बैठे रहो…और मेरी राय मानो तो बाज़ार से चूड़ियाँ पहन लो”..
“चूड़ियाँ खरीद के पहन लूँ?”…
“हाँ!…खरीद के…छीनना तो तुम्हारे बस का है नहीं तो खरीदनी ही पड़ेंगी ना?”…
“क्या यार?…तुम भी…मैँ तो आशिकों का सच्चा हमदर्द समझ के आपको फोन किया था और आप हैँ कि मुझे ही निरुत्साहित करने पे तुले हैँ?”…
“निरुत्साहित नहीं करूँ तो और क्या करूँ?…तुम्हारी जगह अगर मैँ होता तो अब तक सामने वाले का थोबड़ा बीस बार तोड़ चुका होता”….
“तो मेरे लिए ये शुभ काम आप खुद ही…अपने कर-कमलों से क्यों नहीं कर देते?”…
“इनकार किसने किया है?…लेकिन पैसे लगते हैँ इस सब के”….
“पैसों से मैँने कब इनकार किया है?…पैसे तो दस…बीस…सौ…पचास जितने मर्ज़ी ले लें लेकिन रुपए…
“नॉट ए फन्नी जोक अगेन…मैँ मज़ाक के मूड में नहीं हूँ…अगर पाँच हज़ार रुपए खर्च कर सकते हो तो बताओ”…
“लेकिन काम तो हो जाएगा ना?”…
“तुम्हें शक है?”…
“नहीं!..शक तो नहीं लेकिन…
“उसके पिटे हुए थोबड़े की फोटो तुम्हारे इसी नम्बर पे ‘एम.एम.एस’ के जरिए भे दी जाएगी”…
“ओ.के”…
“लेकिन मेरे ICICI बैंक के खाते में पैसे तुम्हें ऐडवांस में जमा कराने होंगे”..
“मंज़ूर है”…
“ठीक है…तो फिर मेरा एकाउंट नम्बर नोट करो”…
“एक मिनट”गुड्डू पैन और पेपर सम्भालता हुआ बोला
“98564xxxxxxx”…
“कर लिया?”..
“जी”..
“अब मुझे उस हरामखोर का पता बताओ”…
“पता तो मुझे मालुम नहीं है”…
“क्या मतलब?”…
“वो स्साला मेरे डर के मारे बार-बार अपना पता-ठिकाना बदल लेता है”…
“उसका कोई फोन नम्बर?…कोई ई-मेल आई.डी वगैरा?…जिससे उसके बारे में मालुमात हो सके”…
“एक नम्बर है तो सही लेकिन आजकल चालू है कि नहीं…ये नहीं पता”…
“क्या मतलब?”…
“मेरे डर के मारे स्विच ऑफ रखने लग गया था”…
“ओह!..खैर…तुम नम्बर बताओ…मैँ पता लगाने की कोशिश करता हूँ”…
“जी”…
98963….
“ये तो पानीपत का नम्बर है”…
जी!…वो कमीना वहीं तो रहता है”…
“लेकिन वहाँ तो वो तुम्हारा तथाकथित लंगोटिया यार ‘शंटी-दा शार्प शूटर रहता है ना…उसी को सुपारी दे देनी थी”…
“अरे!…उसे सुपारी क्या?…पान कत्था..तम्बाकू …सब ला के दे दिया लेकिन कम्बख्त उसकी गिलौरी नहीं बना पाया”…
“ओह!…चिंता की कोई बात नहीं…मैँ हूँ ना”…
“तुम मुझे उसका नम्बर दो…मैँ ही कुछ ना कुछ करता हूँ”…
“जी!…उसका नम्बर है…
“एक मिनट”मैँ पैन और कॉपी सम्भालता हुआ बोला…
“हाँ!…अब बताओ”…
“9896397625”…
“नाईन एट नाईन सिक्स थ्री नाईन सैवन सिक्स टू फाईव?”…
“जी”…
“स्साले!…तूने मुझसे झूठ क्यों बोला?”…
“कसम से…यही नम्बर है…98963…
“मैँ नम्बर की बात नहीं कर रहा हूँ”…
“तो फिर?”…
“तुमने मुझ से झूठ क्यों बोला कि तुम्हारा नाम गुड्डू है?”…
“सच में…कसम से…म्रेरा नाम गुड्डू ही है…आप चाहें तो मेरी मम्मी से भी पूछ लें”…
“मम्मी जाए भाड़ में…ये पागल मुझे नहीं..किसी और को बनाईयो”….
“क्क्या मतलब?”…
“तुम्हारा नाम ‘चंपू’ नहीं है?”…
“चंपू’?…नहीं तो”गुड्डू का अकबकाया सा जवाब
‘चंपू’…ओए…ओए चंपू’ कह के बुलाती थी?”…
“य्ये…ये आपसे किसने कह दिया?”…
“तेरी माँ ने”…
“क्क्या मतलब?”…
“स्साले!…मुझे खुद चिंकी ने बताया है”…
“क्या?”…
‘चंपू’…ओए…ओए चंपू’ है”…
“क्क्या?…क्या बकवास कर रहे हो?”…
“स्साले!…अपने जिस अवैध बाप को मारने की सुपारी तू मुझे दे रहा था ना…वो कोई और नहीं…मैँ खुद हूँ”…
“क्या?”…
“हाँ!..स्साले…ध्यान से सुन…उसका वो आशिक भी मैँ ही हूँ जो उसके साथ ‘स्पलैश’ वाटर पार्क में मस्ती करने गया था”…
“क्या?…क्या कह रहे हो तुम?”…
“और वो मनमोहिनी सूरत वाला शक्स भी मैँ ही हूँ जिससे बात करने के लिए वो तुझ से अपना फोन रिचार्ज करवाया करती थी”…
“झूठ!…बिलकुल झूठ”…
“और सुन…ये नम्बर मैँने तेरे डर की वजह से नहीं बल्कि दिल्ली में रोमिंग लगने की वजह से बन्द कर रखा है मैँने”…
“बस…बहुत हो चुका…अब मैँ बोलूँगा और तू…तू सुनेगा”…
“हाँ-हाँ!…सुना…क्या सुनाना चाहता है?”..सुना…अब सुनाता क्यों नहीं?”…
“जिस ‘शंटी-दा शार्प शूटर’ के डर से तू दिल्ली में छुपा बैठा है ना?…उसे मैँ ही हफ्ता वसूली के लिए तेरी दुकान पे भेजा करता था”…
“क्या?”…
“जिस यमराज के डर से तू पानीपत छोड़ के मारा-मारा फिर रहा है ना…वो स्साले!…मैँ ही हूँ”…
“अब तो बेटे!…तेरी खैर नहीं…वहीं…वहीं दिल्ली आ के तेरा बैण्ड ना बजाया तो मेरा भी नाम ‘चंपू’ …ऊप्स!…सॉरी ‘गुड्डू नहीं”…
“आ जा…आ जा…बड़े शौक से आ जा…जीजे की शादी में साला नहीं आएगा तो और कौन आएगा”…
“स्साले!…मैँ तेरी बारात में नहीं…तेरी मौत के मातम में शरीक होने आऊँगा”…
“अरे!…जा-जा…तेरे जैसे छत्तीस आए और छत्तीस चले गए”…
“शट अप”…
“यू शट अप”..
“भैण…के *&ं%$#@#$#% ….
*&ं%$#$% #$%$#$%ं&
‘चंपू’…ओए…ओए चंपू’
“स्साले!…हराम खोर… रख फोन…फोन रख!…स्साले……
“मैँ क्यों रखूँ?…पहले तू…तू रख फोन..स्साले…
“तेरी भैण की *&ं%$#@#$#% ….
*&ं%$#$% #$%$#$%ं&
{और उसके बाद दोनों तरफ से फोन पटक दिया जाता है}
***राजीव तनेजा***
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